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शुक्रवार, 21 मई 2021

एक गीत -मेड़ों पर वसन्त

 

चित्र -साभार गूगल 
एक गीत -मेड़ों पर वसन्त 
लोकरंग 
में वंशी लेकर 
गीत सुनाता है |
मेड़ों पर 
वसन्त का 
मौसम स्वप्न सजाता है |

सुबह -सुबह
उठकर आँखों 
का काजल मलता  है ,
संध्याओं को 
जुगनू बनकर 
घर -घर जलता है ,
नदियों के 
जूड़े -तितली 
के पंख सजाता है |

हल्दी के 
छापे -कोहबर
में रंग इसी का है ,,
कोई भी 
हो फूल 
फूल में रंग इसी का है ,
आँखों की 
भाषा पढ़ने का 
हुनर सिखाता है |

पीला कुर्ता 
पहने सूरज 
डूबे झीलों में ,
यादों की 
खुशबू फैली है 
कोसों -मीलों में ,
यह जीवन 
का सबसे  
अच्छा राग सुनाता है |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 







शुक्रवार, 7 मई 2021

एक गीत -फिर गुलाबी फूल -कलियों से लदेंगी नग्न शाखें



चित्र -साभार गूगल 
एक गीत -
फिर गुलाबी फूल ,कलियों से लदेंगी  नग्न शाखें 

फिर  गुलाबी 
फूल ,कलियों से
लदेंगी  नग्न शाखें   |
पर हमारे 
बीच होंगी नहीं 
परिचित कई आँखें |

यह अराजक 
समय ,मौसम 
भूल जाएगा जमाना ,
फिर किताबों में 
पढ़ेंगे गाँव का 
मंज़र  सुहाना ,
देखकर 
हम मौन होंगे 
तितलियों की कटी पाँखेँ |

झील में 
खिलते कंवल,  
मछली नदी में जाल होंगे ,
नहीं होगा 
स्वर तुम्हारा 
साज सब करताल होंगे ,
गाल पर रूमाल 
होंगे 
डबडबाई हुई आँखें |

ज्ञान और विज्ञान 
का सब दम्भ 
कैसे है पराजित ,
प्रकृति के 
उपहास का यह 
लग रहा  परिणाम किंचित ,
अब घरों की 
खिड़कियाँ हैं 
जेल की जैसे सलाखें |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

बुधवार, 5 मई 2021

एक गीत -दिन लौटें मुस्कानों वाले

 

चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -दिन लौटें मुस्कानों वाले 

डायन सी रातें 
दिन सहमे 
मौसम भी तूफानों वाले |
कोई पाती 
लिखे प्रेम की  
दिन लौटें मुस्कानों वाले |

पर्वत ,टीलों 
नदी ,पठारों 
शहरों में पसरा सन्नाटा ,
गंध न कोई 
फूल शाख पर 
जगह -जगह सेही का काँटा ,
शुभ -मंगल 
के शब्द नदारद 
जुमले सबके तानों वाले |

सुनों सुनयने !
आज नींद में 
आँखों को भर लो सपनों से ,
सबका ख़ैर 
कुशलता पूछो 
आज पराये और अपनों से ,
पियराये मुख 
चाँदनियों के 
ग्रह -नक्षत्र शैतानों वाले |

काशी ,वृन्दावन  
कौसानी 
हँसो पहाड़ों वाली रानी ,
हरियाली 
का गीत सुनाओ 
उतरो मेघों बरसो पानी ,
हरे नीम 
निबकौड़ी वाले 
सूखे पत्ते पानों वाले |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 


मंगलवार, 4 मई 2021

एक गीत - खेतों से लौट गया नहरों का पानी

 

चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -

खेतों से लौट गया नहरों का पानी 


खेतों से 
लौट गया 
नहरों का पानी |
मटमैला 
रंग हुआ 
फसलों का धानी |

खाद- बीज 
ब्याज सहित 
कर्ज कुछ उधारी ,
गेहूं में 
रोग लगा 
धान सब मुंगारी ,
गाँवों के 
नाम अलग 
एक है कहानी |

मौसम को 
पढ़ने में 
गिरे चढ़े पारे ,
सरकारें 
बदली तो 
बदल गए नारे ,
बच्चे 
परदेश गए 
डूबती किसानी |

झगड़े में 
बाग बिके 
साझे की नीम कटी ,
एक ही 
पड़ोसन थी 
दुश्मन के साथ सटी ,
वक्त की 
अदालत में 
रोज तजमिसानी |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

रविवार, 2 मई 2021

 

चित्र -साभार गूगल -गुरु गोरखनाथ 


एक गीत -सारंगी जोगी मत छोड़ना

सारंगी जोगी मत छोड़ना । चंचल मन विषघट को फोड़ना । जीवन के तार जहाँ ढीले हों दुःख से जब नयन कभी गीले हों तार सभी कसकर के बाँधना गोरखबानी मन को साधना सुर की यह वंशी मत तोड़ना । माटी की देह देह नश्वर है गीता का श्लोक मन्त्र ईश्वर है माया की कैद में मछन्दर है तिरिया के देश महल अन्दर है गुरु के टूटे मनके जोड़ना । जयकृष्ण राय तुषार

एक ग़ज़ल -अब टूटते रिश्तों को बचाने का समय है

  

चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -अभी मुल्क बचाने का समय है 

गलती है कहाँ यह न गिनाने का समय है 
मिल जुल के अभी मुल्क बचाने का समय है 

जो छोड़ गए उनको भी हम याद करेंगे 
फिलहाल अभी ग़म को भुलाने का समय है 

जो आँख में आँसू लिए बैठे हैं घरों में 
दुख बाँटके उनका ये हँसाने का समय है 

बोतल में बिके पानी हवा बेच रहे हैं 
अब नीम औ पीपल को लगाने का समय है  

आँधी ये किसी मुल्क की साज़िश का है हिस्सा  
शाखों पे खिले फूल बचाने का समय है 

यह वक्त पराजित हो ये कोशिश हो हमारी 
जीवन का हरेक मंत्र बताने का समय है 

है कोई मसीहा कोई शैतान बना है 
हैवान को इंसान बनाने का समय है 

एक पेड़ नहीं वन में ही ये आग लगी है 
अब राग तो मल्हार सुनाने का समय है 

दरिया की लहर तोड़ के साहिल को बहो तुम 
हर खेत की अब प्यास बुझाने का समय है 

असहाय नहीं छोड़िए घर बार मोहल्ला 
अब टूटते रिश्तों को बचाने का समय है 

कवि /शायर -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल