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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

एक गीत -हाशिये पर नीम ,पीपल

  

चित्र-साभार गूगल 

एक गीत -हाशिए पर  नीम ,पीपल 

हाशिए पर 
नीम ,पीपल 
नदी ,झरने ,हरे जंगल |
पीढ़ियों के 
लिए मौसम 
हो गया कैसे अमंगल |

प्रकृति का 
कितना विरूपण 
यह तरक्की कर रही है ,
स्वप्न भी हैं 
प्रेत के अब 
नींद हर दिन डर रही है ,
सिर्फ़ ओले 
और पत्थर 
बाँटते अब घने बादल |

मंदिरों में 
मंत्र -पूजा 
नहीं कोई शंख स्वर है ,
विष भरे 
वातावरण में 
मौन रथ पर भाष्कर है ,
स्वस्ति वाचन 
नहीं कोई 
वेदपाठी शगुन हलचल |

मूल्य ,नैतिकता 
तिरोहित 
पत्थरों की बस हवेली ,
बोन्साई 
हँस रहे हैं 
धूल में लिपटी चमेली ,
झील का 
जल है निरुत्तर 
कहाँ गायब रक्त शतदल |

बादलों में 
थकी जैसे चाँदनी 
दिनमान सोया ,
गीत का 
मुखड़ा लिखूँ क्या 
धुन्ध में उपमान खोया ,
दे रहा है
गंध बासी ,
माथ पर अब तपन संदल |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र -साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है    

 

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -
तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है 

तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है
ये उड़ते परिंदो के ठिकाने का शजर है 

हाथों में किसी बाघ की तस्वीर लिए है 
यह देख के लगता है कि ये बच्चा निडर है 

ये भौंरा बयाबाँ में किसे ढूँढ रहा है 
जिस राह से आया है वहीं फूलों का घर है 

वंशी हूँ तो होठों से ही रिश्ता रहा अपना 
पर आज गुलाबों कि तरह किसका अधर है 

रोते हुए हँस देता है रातों को वो अक्सर 
ये नींद में आते हुए ख़्वाबों का असर है 

परदेस से लौटा है बहुत दिन पे मुसाफ़िर 
अब ढूँढ रहा माँ की वो तस्वीर किधर है 

जयकृष्ण राय तुषार 
 
चित्र साभार गूगल 

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

एक ग़ज़ल -ये इश्क नहीं ख़त था किसी काम के लिए

 


एक ग़ज़ल -ये इश्क नहीं ख़त था किसी काम
चित्र -साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -
ये इश्क नहीं ख़त था किसी काम के लिए 

 ये इश्क नहीं ख़त था किसी काम के लिए   
जादूभरी निगाह थी इक शाम के लिए 

होठों पे तबस्सुम को सलीके से सजाना 
आँसू न रहे आरिज़ -ए -गुलफाम के लिए 

साक़ी की अदाओं का दीवाना हूँ सच है 
पै उसकी क़सम तोड़ दूँ क्या जाम के लिए 

मुद्दत पे मिले हैं तो चलो छत पे खुले में 
मसनद न लगाना अभी आराम के लिए 

शोहरत के दिनों के हैं फ़साने मेरे कितने 
अफ़साना कौन लिखता है नाकाम के लिए 

जयकृष्ण राय तुषार