एक ग़ज़ल -
तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है
तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है
ये उड़ते परिंदो के ठिकाने का शजर है
हाथों में किसी बाघ की तस्वीर लिए है
यह देख के लगता है कि ये बच्चा निडर है
ये भौंरा बयाबाँ में किसे ढूँढ रहा है
जिस राह से आया है वहीं फूलों का घर है
वंशी हूँ तो होठों से ही रिश्ता रहा अपना
पर आज गुलाबों कि तरह किसका अधर है
रोते हुए हँस देता है रातों को वो अक्सर
ये नींद में आते हुए ख़्वाबों का असर है
परदेस से लौटा है बहुत दिन पे मुसाफ़िर
अब ढूँढ रहा माँ की वो तस्वीर किधर है
जयकृष्ण राय तुषार
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