चित्र-साभार गूगल |
एक गीत -हाशिए पर नीम ,पीपल
हाशिए पर
नीम ,पीपल
नदी ,झरने ,हरे जंगल |
पीढ़ियों के
लिए मौसम
हो गया कैसे अमंगल |
प्रकृति का
कितना विरूपण
यह तरक्की कर रही है ,
स्वप्न भी हैं
प्रेत के अब
नींद हर दिन डर रही है ,
सिर्फ़ ओले
और पत्थर
बाँटते अब घने बादल |
मंदिरों में
मंत्र -पूजा
नहीं कोई शंख स्वर है ,
विष भरे
वातावरण में
मौन रथ पर भाष्कर है ,
स्वस्ति वाचन
नहीं कोई
वेदपाठी शगुन हलचल |
मूल्य ,नैतिकता
तिरोहित
पत्थरों की बस हवेली ,
बोन्साई
हँस रहे हैं
धूल में लिपटी चमेली ,
झील का
जल है निरुत्तर
कहाँ गायब रक्त शतदल |
बादलों में
थकी जैसे चाँदनी
दिनमान सोया ,
गीत का
मुखड़ा लिखूँ क्या
धुन्ध में उपमान खोया ,
दे रहा है
गंध बासी ,
माथ पर अब तपन संदल |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
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