सुनहरी कलम से
(हिन्दी के महत्वपूर्ण कवियों का ब्लॉग)
लेबल
- मेड़ों पर वसन्त
- एक आस्था का गीत -राम तुम्हारे निर्वासन को दुनिया राम कथा कहती है
- एक आस्था का गीत-यहाँ जन्म लेती हैं मंगल ऋचाएँ
- एक गीत - खेतों से लौट गया नहरों का पानी
- एक गीत -अबकी शाखों पर वसंत तुम
- एक गीत -क्रांतिकारियों के बलिदानों को हम कैसे भूल गए
- एक गीत -डॉ शिवबाहादुर सिंह भदौरिया
- एक गीत -तैरती जल ज्योति
- एक गीत -दिन लौटें मुस्कानों वाले
- एक गीत -फिर गुलाबी फूल -कलियों से लदेंगी नग्न शाखें
- एक गीत -बंजारन बाँसुरी बजाना
- एक गीत -मेड़ों पर वसन्त
- एक गीत -यह पुण्य देवभूमि है | राज्यगीत
- एक गीत -राजा से मांगो मत काम koi
- एक गीत -संविधान में कहाँ लिखा है ?
- एक गीत -हाशिये पर नीम
- एक गीत / यह जरा सी बात
- एक गीत-इस पठार पर फूलों वाला मौसम लाऊँगा
- एक गीत-एक रंग होली का
- एक गीत-बासमती के धान हरे हैं
- एक गीत-भींग रहे अँजुरी में फूल
- एक गीत-सारंगी जोगी मत छोड़ना
- एक ताज़ा ग़ज़ल -मगर मतला तुम्हारे हुस्न के दीदार से निकला
- एक देशगान -उठो अब मेरे हिंदुस्तान
- एक देशगान -फूल चढ़ाओ भारत माता को
- एक प्रेम गीत -आधुनिक संदर्भ दुष्यंत शकुन्तला
- एक ग़ज़ल - मेरी क़िस्मत में नहीं इस झील का शतदल रहा
- एक ग़ज़ल -अब टूटते रिश्तों को बचाने का समय है
- एक ग़ज़ल -खौफ़ मौसम का नहीं अब डर नहीं हिमपात का
- एक ग़ज़ल -तुम्हारा जन्म भारत भूमि पर अपवाद जैसा है
- एक ग़ज़ल -तूफ़ान की जद में है हवाओं की नज़र है
- एक ग़ज़ल -न पेड़ है न परिंदो का अब मकान कोई
- एक ग़ज़ल -पूनम की रात चाँद बहुत सादगी में है
- एक ग़ज़ल -बहुत मौसम कमीना है
- एक ग़ज़ल -मगर संगम के लिए जल की त्रिधारा चाहिए
- एक ग़ज़ल -मैं तो मिट्टी का दिया हूँ कहीं जल सकता हूँ
- एक ग़ज़ल -मढ़ेंगे किस तरह इस मुल्क की तस्वीर सोने में
- एक ग़ज़ल -यह मुल्क सभी का है देखभाल कीजिए
- एक ग़ज़ल -ये इश्क नहीं ख़त था किसी काम के लिए
- एक ग़ज़ल -रंग पिचकारी लिए मौसम खड़ा
- एक ग़ज़ल -संगम प्रयागराज/कुम्भ
- एक ग़ज़ल -सुर्खाब ग़ज़ल
- एक ग़ज़ल -हर दिन डूबे सूरज इसमें चाँद को हर दिन आना है
- एक ग़ज़ल /यादों के कुछ जुगनू रख लो /शायर पवन कुमार
- एक ग़ज़ल-इस बार लिखा उसने न मिलने का बहाना
- एक ग़ज़ल-उतरा जमीं पे चाँद तो बरसात हो गयी
- एक ग़ज़ल-सब ख़्वाब लिए बैठे यहाँ पाँच सितारा
- एक ग़ज़ल-फ़साना ग़ज़ल में था
- किताब-मेड़ों पर वसन्त
- कुछ दोहे -हल्दी के छापे लगें कोहबर गाये गीत
- गीत संग्रह मेड़ों पर वसन्त प्रकाशक विभोर अग्रवाल के हाथ मे
- गीत संग्रह-मेड़ों पर वसंत
- ज0गु0रा0 स्वामी रामानंदाचार्य रामनरेशाचार्य जी और काशी
- डॉ0 अमित भारद्वाज निदेशक उच्च शिक्षा
- दो गज़लें
- दो ग़ज़लें-भारतीय संसजृति
- नई किताब-न्यायालय में महामना
- पद्मश्री शोभना नारायण जी से एक मुलाक़ात
- परिचर्चा /प्रेम की भूतकथा
- पीपल
- प्रोफ़ेसर सदानन्दप्रसाद गुप्त /कार्यकारी अध्यक्ष हिंदी संस्थान लखनऊ
- महादेवी वर्मा /कुछ चित्र कुछ कविताएँ
- माननीय न्यायधीश उच्चतम न्यायालय श्री पंकज मित्तल जी को पुस्तक भेंट
- मेरा नया गीत संग्रह-मेड़ों पर वसंत
- मेरा सद्यः प्रकाशित गीत संग्रह-मेड़ों पर वसंत
- साहित्य समाज के पीछे लंगड़ाता हुआ चल रहा है /रवीन्द्र कालिया
- स्थापना दिवस समारोह-उ0 प्र0 हिंदी संस्थान
- फ़ादर पी0 विक्टर को पुस्तक भेंट करते हुए
शुक्रवार, 19 मई 2023
एक गीत -बंजारन बाँसुरी बजाना
शनिवार, 4 मार्च 2023
माननीय न्यायधीश उच्चतम न्यायालय श्री पंकज मित्तल
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माननीय न्यायमूर्ति उच्चतम न्यायालय श्री पंकज मित्तल जी |
सोमवार, 6 फ़रवरी 2023
पद्मश्री शोभना नारायण जी से एक आत्मीय मुलाक़ात
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पद्मश्री शोभना नारायण जी को पुस्तक भेंट करते हुए साथ में प्रयागराज संग्रहालय के निदेशक श्री राजेश प्रसाद |
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श्री राजेश प्रसाद जी निदेशक संग्रहालय को पुस्तक भेंट करते हुए |
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पद्मश्री शोवना नारायण एवं निदेशक इलाहाबाद संग्रहालय श्री राजेश प्रसाद और मैं |
सोमवार, 25 जुलाई 2022
एक देशगान -फूल चढ़ाओ भारत माता को
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भारत माता |
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चित्र साभार गूगल |
गुरुवार, 14 जुलाई 2022
एक गीत -तैरती जलज्योति
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निराला |
बैसवारे की मिट्टी में विख्यात कवि लेखक संपादक हुए हैं जिनमें निराला, रामविलास शर्मा, रसखान, नूर, मुल्ला दाऊद रमई काका, शिव मंगल सिंह सुमन, शिव बहादुर सिंह भदौरिया, रूप नारायण पांडे माधुरी के संपादक आदि. इसी मिट्टी को समर्पित एक गीत
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रसखान |
शुक्रवार, 8 जुलाई 2022
एक गीत -डॉ शिवबहादुर सिंह भदौरिया
रविवार, 15 मई 2022
दो गज़लें -शाम को कोई तो जगजीत सा गाता है यहाँ
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चित्र साभार गूगल स्मृतिशेष जगजीत सिंह |
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चित्र साभार गूगल |
एक गीत -राजा से मांगो मत काम कोई
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चित्र साभार गूगल |
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चित्र साभार गूगल |
शुक्रवार, 13 मई 2022
एक गीत -संविधान में कहाँ लिखा है?
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श्रीराम |
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श्रीमद भागवत गीता |
गुरुवार, 5 मई 2022
एक ग़ज़ल -न पेड़ है न परिंदों का अब मकान कोई
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सभार गूगल |
एक ताज़ा - ग़ज़ल
न पेड़ है न परिंदों का अब मकान कोई
सुकून बख़्स ज़मीं है न आसमान कोई
चलो सितारों में ढूँढें नया ज़हान कोई
तमाम नक़्शे घरों के बदल गए हैँ यहाँ
न पेड़ हैँ न परिंदो का अब मकान कोई
तमाम उम्र मुझे,मंज़िलें मिली ही नहीं
मुझे पता ही न था रास्ता आसान कोई
अजीब शाम कहीं महफ़िलों का दौर नहीं
बुरी ख़बर के बिना है कहाँ विहान कोई
ज़मीं पे रहके नज़र भी सिमट गयी है बहुत
अब अपने खेतोँ में रखता नहीं मचान कोई
हवाएं गर्म हैँ,मौसम को ये खबर ही कहाँ
नहीं अब मत्स्य,परी जल के दरमियान कोई
तमाम दाग़ हैँ अब सभ्यता के दामन पर
कहाँ अब बुद्ध को सुनता है बामियान कोई
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र सभार गूगल |