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सोमवार, 6 जनवरी 2025

एक ग़ज़ल -मौसम संवार दे

 

गोस्वामी तुलसीदास 

एक ताज़ा ग़ज़ल 

चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल 

पर्वत, नदी, दरख़्त, तितलियों को प्यार दे 

अपनी हवस को छोड़ ये मौसम संवार दे 


इतना ग़रीब हूँ कि इक तस्वीर तक नहीं 

ख़्वाबों में आके माँ कभी मुझको पुकार दे 


मुझको भी तैरना है परिंदो के साथ में 

संगम के बीच माँझी तू मुझको उतार दे 


झूले पे मैं झुलाऊँगा राधा जू स्याम को 

चन्दन की काष्ठ भक्ति से गढ़के सुतार दे 


दुनिया की असलियत को परखना ही है अगर 

ए दोस्त मोह माया की ऐनक उतार दे 


काशी में तुलसीदास या मगहर में हों कबीर

दोनों ही सिद्ध संत हैं दोनों को प्यार दे 


जिस कवि के दिल में राष्ट्र हो वाणी में प्रेरणा 

उस कवि को यह समाज भी फूलों का हार दे 


कवि /शायर 

जयकृष्ण राय तुषार

संत कबीरदास 


शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

अंग्रेजी राज और हिन्दी की प्रतिबंधित पत्रकारिता -लेखक संतोष भदौरिया


 नई किताब -अंग्रेजी राज और हिन्दी की प्रतिबंधित पत्रकारिता 

लेखक प्रोफ़ेसर संतोष भदौरिया 

यशस्वी लेखक प्रोफ़ेसर संतोष भदौरिया 


लोकभारती प्रकाशन प्रयागराज से अभी एक किताब प्रकाशित हुई है. अंग्रेजी राज और हिन्दी की प्रतिबंधित पत्रकारिता इस पुस्तक के लेखक इलाहाबाद केंद्रीय विश्व विद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफ़ेसर संतोष भदौरिया. पुस्तक हिन्दी पत्रकारिता के अतीत के पन्नो को बहुत सजगता से खोलती है.यह पुस्तक पठनीय और संग्रहनीय है. सजिल्द 600 रूपये मूल्य है और पेपरबैक 350 रूपये. लोकभारती ने इस पुस्तक का आवरण भी सुंदर डिजायन किया है. पुस्तक में कुल 191 पृष्ठ हैं एवं फ्लैप महाश्वेता देवी का है.प्रोफ़ेसर भदौरिया इलाहाबाद विश्व विद्यालय के स्नातक एवं परास्नातक,एम. फिल.एवं पी. एच. डी. जवाहलाल नेहरू विश्व विद्यालय से किए हैं. प्रोफ़ेसर भदौरिया को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें.


पुस्तक का नाम -अंग्रेजी राज एवं हिन्दी की प्रतिबंधित पत्रकारिता 

प्रकाशक -लोकभारती प्रकाशन 

पेपरबैक मूल्य 350 रूपये 




गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

ग़ज़ल -दर्द किनारों के साथ थे

 

चित्र साभार गूगल 


भौँरे, तितलियाँ, फूल बहारों के साथ थे 
सड़कों पे चंद लोग ही नारों के साथ थे 

नदियों में पाप धोके सभी घर चले गए 
सारे कटाव दर्द किनारों के साथ थे 

मिट्टी के वर्तनों में कालाओं के फूल थे 
जब तक ये चाक धागे कुम्हारों के साथ थे 

जंगल की आग देखके रस्ते बदल लिए 
ये आदमी हसीन नज़ारों के साथ थे 

सूरज की रोशनी में परिंदे तमाम थे 
लेकिन चकोर चाँद सितारों के साथ थे 

कवि /शायर 
जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल 


गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

एक ग़ज़ल -सभी के पाँव के घुँघरू बजे तो टूट गए

 

चित्र साभार गूगल 

दिए बुझाती रही हैं सभी दिशाएं यहाँ 

उजाले किसकी अदालत में सच बताएँ यहाँ 


पढ़े लिखे भी यहाँ उलजुलूल बोल रहे 
बिना तमीज़ के होती रहीं सभाएं यहाँ 

हरेक बज़्म में सब तर्जुमा सुनाते रहे 
तमाम पात्र वही एक सी कथाएँ यहाँ 

बला का शोर था महफ़िल में लौट आए सभी 
हुनर से ज्यादा परखते हैं सब अदाएँ यहाँ 

सभी के पाँव के घुंघरु बजे तो टूट गए 
अब तीन ताल पे किसको मियाँ नचाएँ यहाँ 

चित्र साभार गूगल 



शायर 
जयकृष्ण राय तुषार 

शनिवार, 7 दिसंबर 2024

एक मुलाक़ात -श्री विजय किरण आनंद मेलाधिकारी कुम्भ

 

मेलाधिकारी महाकुम्भ श्री विजय किरण आनंद 

मेलाधिकारी कुम्भ श्री विजय किरण आनंद जी को फ्रेम किया कुम्भ गीत और कुछ पुस्तकें भेंट किया. मुलाक़ात काफी सहृदयता से हुईं. श्री विजय किरण आनंद जी होनहार I. A. S. हैं और महत्वपूर्ण सुधार के लिए जाने जाते हैं.

महाकुम्भ नगर का प्रथम जिलाधिकारी भी आदरणीय श्री विजय किरण आनंद जी को बनाया गया है.महाकुम्भ की निर्विघ्न सफलता हेतु हार्दिक शुभकामनायें.

श्री विजय किरण आनंद I. A. S.


शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

एक ग़ज़ल -आगाज़ नए साल का भगवान नया हो

 

चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -आगाज़ नए साल का भगवान नया हो 


मौसम की कहानी नई उनवान नया हो 

आगाज़ नए साल का भगवान नया हो 


फूलों पे तितलियाँ हों बहारें हों चमन में 

महफ़िल में ग़ज़ल -गीत का दीवान नया हो 


बेटी हो या बेटा रहे रस्ते में सुरक्षित 

इस अबोहवा में यही एहसान नया हो 


खुशहाली हो हर पर्व में रंगोली नई हो 

रिश्तों का भरोसा लिए मेहमान नया हो 


आँखों में अगर ख़्वाब हो दुनिया के लिए हो

सुख चैन का परचम लिए इंसान नया हो 


ख़ामोश अगर शाख पे बैठे हों परिंदे 

सूरज से कहो उनका निगहबान नया हो 


इस भीड़ से हटकर चलो मिलते हैं कहीं पर 

खुशबू हो हवाओं में बियाबान नया हो

जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 

कवि जयकृष्ण राय तुषार 


बुधवार, 20 नवंबर 2024

एक ग़ज़ल -सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है



चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल-

सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है 


गले में क्रॉस पहने है मगर चन्दन लगाती है

सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है


कोई बजरे पे कोई रेत में धँसकर नहाता है

ये गंगा माँ निमन्त्रण के बिना सबको बुलाती है


सनातन संस्कृति कितनी निराली और पुरानी है

हमारी आस्था चिड़ियों को भी दाना खिलाती है


खिलौने आ गए बाजार से लेकिन हुनर का क्या

मेरी बेटी कहाँ अब शौक से गुड़िया बनाती है


वो राजा क्या बनेगा अश्व की टापों से डरता है

उसे दासी महल में शेर का किस्सा सुनाती है


ये हाथों की सफ़ाई है इसे जादू भी कहते हैं

नज़र से देखने वालों को यह अन्धा बनाती है


खिले हैं फूल जब तक तितलियों से बात मत करना

जरूरत पेड़ से गिरते हुए पत्ते उठाती है


कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


कवि /शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


शनिवार, 16 नवंबर 2024

हिंदी ग़ज़ल का अक्षर पथ -एक आलोचनात्मक किताब

 

डॉ नित्यानंद श्रीवास्तव 


हिंदी ग़ज़ल पर आलोचना की महत्वपूर्ण किताब 

हिंदी का अक्षर पथ -

लेखक डॉ नित्यानंद श्रीवास्तव 


अभी अभी डाक से हिंदी ग़ज़ल आलोचना पर एक अद्भुत शोधपरक किताब"हिंदी ग़ज़ल का अक्षर पथ *मिली. डॉ नित्यानंद श्रीवास्तव गोरखपुर के महंत दिग्विजय नाथ कालेज में हिंदी के प्राध्यापक हैं. निरंतर गूढ विषयों पर लिखते रहते हैं और मेरे प्रेरणास्त्रोत भी हैं. यह किताब ग़ज़ल के उद्भव की प्रचलित धारणाओं को ख़ारिज के उनकी नई स्थापना करती है. ग़ज़ल विधा पर शोध के लिए बहुत उपयोगी पुस्तक को प्रकाशित किया है सर्व भाषा ट्रस्ट ने. मूल्य 499 रूपये पेज 184 हैं.पुस्तक में कुल 9 अध्याय हैं.सर्व भाषा ट्रस्ट का प्रकाशन अद्भुत है. बेहतरीन छपायी बेहतरीन कवर. आदरणीय केशव पाण्डेय जी को बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनायें.


मैं इस पुस्तक के लेखक  और प्रकाशक दोनों को बधाई और शुभकामनायें देता हूँ. साहित्य मनीषयों के बीच यह लोकप्रिय होगी और उपयोगी भी.

सादर

पुस्तक का नाम -हिंदी ग़ज़ल का अक्षर पथ (आलोचना )

लेखक -श्री नित्यानंद श्रीवास्तव 

प्रकाशक -सर्व भाषा ट्रस्ट 

प्रथम संस्करण 2024

मूल्य 499 सजिल्द 



लेखक परिचय 





मंगलवार, 12 नवंबर 2024

एक ग़ज़ल -हर खिड़की में धूप -चाँदनी

 

चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -हर खिड़की में धूप -चाँदनी 


शाम को दादी किस्से कई सुनाती है 

बच्चों को भी सोनपरी ही भाती है 


अपनी -अपनी नज़रों से सब देख रहे

हर खिड़की में धूप -चाँदनी आती है 


किसी घाट पर फूल चढ़ाओ पुण्य वही 

गंगा काशी से ही पटना जाती है 


गुरुद्वारा, गिरिजाघर, और शिवाले में 

एक ज्योति है, एक दिए की बाती है 


तितली का फूलों से केवल रिश्ता है 

चिड़िया तो हर मौसम गाना गाती है 


यात्री को सच राह बताने वाला हो 

पगडंडी भी मंज़िल तक पहुँचाती है 


खतरा तो खतरा है चाहे छोटा हो 

बीड़ी भी जंगल में आग लगाती है

कवि जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 


सोमवार, 11 नवंबर 2024

एक ग़ज़ल -चिड़िया कभी गाती नहीं

 

चित्र साभार गूगल 

चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -बाज़ से डरती अगर चिड़िया 


सीखने संगीत विद्यालय कभी जाती नहीं 
बाज़ से डरती अगर चिड़िया कभी गाती नहीं 

तितलियाँ लिपटी हुईं फूलों से दिन में बेख़बर 
ये मुहब्बत भी तवायफ़ सी है शरमाती नहीं 

नौकरी कुछ इश्क कुछ टैबलेट,बदलते फोन में 
व्यस्त पीढ़ी अब गलत सिस्टम से टकराती नहीं 

मंद तारों की चमक में चाँद का सौंदर्य है 
चाँदनी को सूर्य की सोहबत कभी भाती नहीं 

घर में काजल पारती हैं अब नई माएं कहाँ 
घी में डूबी इन चरागों में कोई बाती नहीं 

कवि -शायर 
जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल