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शुक्रवार, 19 मई 2023

एक गीत -बंजारन बाँसुरी बजाना

 

चित्र साभार गूगल 

एक गीत -बंजारन बाँसुरी बजाना 

मद्धम सुर हो या हो पंचम 
बंजारन  बाँसुरी बजाती जा.
राजा अब गीत कहाँ सुनता
तू अपनी बस्ती में गाती जा.

मौसम को दोष नहीं देना
वन फूलों जैसा ही खिलना,
हँसकर के तितली को छूना
पात भरे पेड़ों से मिलना.
थकी हुई पर्वत की घाटी
आँखों में स्वप्न को सजाती जा.

कत्थक मुद्राएँ, गन्धर्व नहीं
नौटंकी, लोककला हाशिए,
उज्जयिनी नवरत्नो से विहीन
शब्द, अर्थ भूलते दूभाषिए,
गंगा तो निर्गुण भी सुनती है
लहरों पर दीप कुछ जलाती जा.

नीलकमल झीलों में मुरझाए
लहरों पर जलकुम्भी इतराए,
रिश्तों से रीत गया आँगन
बरसों से दरपन धुंधलाये,
हाथों से मेघों को बीनकर
छत पर कुछ चाँदनी सजाती जा.

कवि जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल 


शनिवार, 4 मार्च 2023

माननीय न्यायधीश उच्चतम न्यायालय श्री पंकज मित्तल


माननीय न्यायमूर्ति उच्चतम न्यायालय
श्री पंकज मित्तल जी 


माननीय न्यायमूर्ति उच्चतम न्यायालय
श्री पंकज मित्तल जी 


सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

पद्मश्री शोभना नारायण जी से एक आत्मीय मुलाक़ात


पद्मश्री शोभना नारायण जी को पुस्तक भेंट करते हुए
साथ में प्रयागराज संग्रहालय के निदेशक श्री राजेश प्रसाद 





श्री राजेश प्रसाद जी निदेशक
संग्रहालय
को पुस्तक भेंट करते हुए 

पद्मश्री शोवना नारायण एवं निदेशक इलाहाबाद
 संग्रहालय श्री राजेश प्रसाद और मैं 


सोमवार, 25 जुलाई 2022

एक देशगान -फूल चढ़ाओ भारत माता को

भारत माता 



एक गीत -बलिदान करोड़ों वीरों का

राजघाट से
पहले फूल
चढ़ाओ भारत माता को.
फिर कोई भी
फूल चढ़ाओ
संविधान निर्माता को.

आज़ादी में
एक नहीँ बलिदान
करोड़ों वीरों का,
सत्याग्रह के
साथ रहेगा
योगदान शमशीरों का,
राष्ट्र यज्ञ में
नहीँ भूलना
वेदों के उदगाता को.

राजगुरु
सुखदेव, भगत सिंह
आज़ादी के नायक हैं,
नेताजी, आज़ाद
तिलक सब
राष्ट्रगान के गायक हैं,
नमन लक्ष्मी
दुर्गा भाभी
जैसी आहुति दाता को.

सम्मानित हो
क्रांति कथा अब
एक -एक बलिदानी की,
गंगा जी में
अस्थि प्रवाहित
कर दो काला पानी की,
किसी एक को
श्रेय न हो
अब भारत भाग्य विधाता की.

कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल 


गुरुवार, 14 जुलाई 2022

एक गीत -तैरती जलज्योति

निराला 

बैसवारे की मिट्टी में विख्यात कवि लेखक संपादक हुए हैं जिनमें निराला, रामविलास शर्मा, रसखान, नूर, मुल्ला दाऊद रमई काका, शिव मंगल सिंह सुमन, शिव बहादुर सिंह भदौरिया, रूप नारायण पांडे माधुरी के संपादक आदि. इसी मिट्टी को समर्पित एक गीत 


एक गीत -शुभ्र दीपक ज्योति यह गंगा किनारे की

तैरती 
जल ज्योति
यह गंगा किनारे की.
कीर्ति
सदियों तक
रहेगी बैसवारे की.

जायसी
दाऊद यहाँ
रसखान का ग्वाला,
नूर का है
नूर इसमें
शब्द की ज्वाला,
भूमि यह
शर्मा, सनेही
और दुलारे की.

शिव बहादुर
सिंह की
पुरवा बह रही इसमें,
शब्द साधक
सुमन शिव मंगल
रहे जिसमें,
स्वर्ण, चन्दन
हलद इसमें
चमक पारे की.

यह द्विवेदी
भगवती की
यज्ञशाला है,
यहीं जन्मा
एक फक्कड़
कवि निराला है.
माधुरी
माधुर्य लाई
चाँद तारे की.

वाजपेई
सुकवि रमई
और चित्रा हैं,
बैसवारी
अवस्थी
इसमें सुमित्रा हैं,
डलमऊ की
स्वप्न छवि 
सुन्दर नज़ारे की.

आज भी
यह एक चन्दन
वन कथाओं का
एक अनहद
नाद इसमें
है ऋचाओं का,
शब्द जल में
चाँदनी की
छवि शिकारे की.

कवि -जयकृष्ण राय तुषार
रसखान 



शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

एक गीत -डॉ शिवबहादुर सिंह भदौरिया

 

[स्मृतिशेष ]कवि -डॉ ० शिव बहादुर सिंह भदौरिया 

एक गीत -कवि डॉ ० शिवबहादुर सिंह भदौरिया
परिचय -डॉ 0शिवबाहादुर सिंह भदौरिया 
बैसवारे की मिट्टी में साहित्य के अनेक सुमन खिले हैं जिनकी रचनाशीलता से हिंदी साहित्य धन्य और समृद्ध हुआ है. स्मृतिशेष डॉ 0 शिव बहादुर सिंह भदौरिया भी इसी मिट्टी के कमालपुष्प है. 15 जुलाई सन 1927 को ग्राम धन्नी पुर रायबरेली में आपका जन्म हुआ. हिंदी नवगीत को असीम ऊँचाई प्रदान करने वाले भदौरिया जी डिग्री कालेज में प्रचार्य पद से सेवानिवृत हुए और 2013 में परलोक गमन हुआ. उनके सुपत्र भाई विनय भदौरिया जी स्वयं उत्कृष्ट नवगीतकार हैं और प्रत्येक वर्ष पिता की स्मृतियों को सहेजने के किए डॉ 0 शिवबहादुर सिंह सम्मान दो कवियों को प्रदान करते हैं.
स्मृतिशेष की स्मृतियों को नमन 

बैठी है 
निर्जला उपासी 
भादों कजरी तीज पिया |

अलग -अलग 
प्रतिकूल दिशा में 
सारस के जोड़े का उड़ना |

किन्तु अभेद्य 
अनवरत लय में 
कूकों, प्रतिकूलों का का जुड़ना |

मेरा सुनना 
सुनते रहना 
ये सब क्या है चीज पिया |

क्षुब्ध हवा का 
सबके उपर 
हाथ उठाना ,पांव पटकना 

भींगे कापालिक -
पेड़ों का 
बदहवास हो बदन छिटकना |

यह सब क्यों है 
मैं क्या जानूँ 
मुझको कौन तमीज पिया |


चित्र -गूगल से साभार 

रविवार, 15 मई 2022

दो गज़लें -शाम को कोई तो जगजीत सा गाता है यहाँ

चित्र साभार गूगल स्मृतिशेष जगजीत सिंह 


एक ग़ज़ल -
शाम  को कोई तो जगजीत सा गाता है यहाँ

आदमी  रंग का सपना लिए आता है यहाँ
ये तो बाज़ार है हर रंग का छाता है यहाँ

तेज बारिश में, कभी धूप में टिकता है कहाँ
बस तसल्ली के लिए आदमी लाता है यहाँ

ट्रेन की बोगी भी घर बार सी लगती है कभी
ज़िन्दगी रेल सी कुछ देर का नाता है यहाँ

दिन की महफ़िल में न अंदाज न आवाज़ सही
शाम को कोई तो जगजीत सा गाता है यहाँ

भूलने वाले मुझे याद किए  हैँ अक्सर
माँ भी कहती थी वही हिचकियाँ लाता है यहाँ

दो

सच कहेगा जो उसे देश निकला देगा
वो जुबानों को अभी और भी ताला देगा

जंग के शौक में बारूद हथेली पे लिए
चाँद के साथ वो आकाश भी काला देगा

सूख जायेंगे हरे पेड़, ये झरने, जंगल
पूछकर देखना मौसम का हवाला देगा

हर मुसाफिर को कड़ी धूप में चलना है अभी
जिस भी रस्ते पे चलोगे वही छाला देगा

नींद को टूटने देना न, उसी में रहना
बंद आँखों को वो हर ख़्वाब निराला देगा

जितने मजहब हैँ खुदा उतने किताबें उतनी
जैसा चश्मा है उसी रंग की माला देगा

चाँदनी सिर्फ़ मोहब्बत का छलावा देगी
पूरी दुनिया को ये सूरज ही उजाला देगा

कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल 




एक गीत -राजा से मांगो मत काम कोई

चित्र साभार गूगल 


एक गीत -मोक्ष कहाँ देता है धाम कोई

सबको
सिंहासन ही चाहिए
पर साथी कहना मत काम कोई।

मौसम के
हरकारे झूठे
चुप रहते गर्मी,बरसातों में,
खेतोँ को 
रौंद रहे नंदी
बैठा है सूदखोर खातों में,
जैसी करनी
वैसी भरनी
मोक्ष कहाँ देता है धाम कोई ।

एकलव्य हो
चाहे लवकुश
वन का ही कंदमूल खाना है,
राजा के
हर उत्सव,मंगल में
जोर-जोर् तालियाँ बजाना है,
सीता को
आग से बचाने
कब आया पुरुषोत्तम राम कोई।

सबके अपने
मेनिफेस्टो
दिल्ली, बंगाली, गुजराती,
सूरज को
छूने की ज़िद में
जलता हर युग में सम्पाती,
मंत्र वही
अलग बस पताका 
कांग्रेस,सोशलिस्ट,दक्षिण या वाम कोई।

साहब की
अभी वही टाई
कदम कदम पर अफसरशाही,
दफ़्तर में
सब कुछ हैँ बाबू
जनता की जेब से उगाही,
लूटतंत्र,
लोकतंत्र, खादी
किसको हिम्मत बोले नाम कोई ।

सूट-बूट 
वालों को टेंडर
वोट बैंक वालों को राशन,
नौकरियाँ
बन्द कारखाने
कागज पर कोरे आश्वासन,
शहरों में
फ्लैट बिके मंहगे
खेत लिया कौड़ी के दाम कोई।

कवि जयकृष्ण राय तुषार


चित्र सभार गूगल
चित्र साभार गूगल 


शुक्रवार, 13 मई 2022

एक गीत -संविधान में कहाँ लिखा है?

 

श्रीराम 


एक गीत -संविधान में कहाँ लिखा और ?

संविधान में
कहाँ लिखा है
राष्ट्रपिता का काम ।
राष्ट्रपिता
हो सकते केवल
कृष्ण,भरत या राम ।

राष्ट्र विखंडित
करने वाले 
को इतना सम्मान,
जो फंदे
पर  झूले उनके
हिस्से बस अपमान,
जन्मभूमि
उनकी पावन है
जितना चारो धाम।

राष्ट्रपिता
वह बने कि जिसने
जीती थी श्रीलंका,
या फिर जिसका
अरब -ईस्ट तक
कभी बजा था डंका,
जिसने ढका
चक्र से सूरज
वह भी पावन नाम ।

राष्ट्र धर्म हो
गया
पड़ोसी मुल्कों का कुरआन,
ढोंगी सेकुलर
नहीं सुनाते
वन्देमातरम् गान,
दिल्ली की
गद्दी पर
बेबस बैठा था हुक्काम।

भारत
हिन्दू राष्ट्र बने
यह जनता का अधिकार,
सबके खातिर
एक नियम हो
बिना किसी तकरार,
राष्ट्र ग्रन्थ हो
भागवत गीता
जन जन करे प्रणाम ।


श्रीमद भागवत गीता


गुरुवार, 5 मई 2022

एक ग़ज़ल -न पेड़ है न परिंदों का अब मकान कोई

 

सभार गूगल

 

एक ताज़ा - ग़ज़ल

न पेड़ है न परिंदों का अब मकान कोई


सुकून बख़्स ज़मीं है न आसमान कोई

चलो सितारों में ढूँढें नया ज़हान कोई


तमाम नक़्शे घरों के बदल गए हैँ यहाँ

न पेड़ हैँ न परिंदो का अब मकान कोई


तमाम उम्र मुझे,मंज़िलें मिली ही नहीं

मुझे पता ही न था रास्ता आसान कोई


अजीब शाम कहीं महफ़िलों का दौर नहीं

बुरी ख़बर के बिना है कहाँ विहान कोई


ज़मीं पे रहके नज़र भी सिमट गयी है बहुत

अब अपने खेतोँ में रखता नहीं मचान कोई


हवाएं गर्म हैँ,मौसम को ये खबर ही कहाँ

नहीं अब मत्स्य,परी जल के दरमियान कोई


तमाम दाग़ हैँ अब सभ्यता के दामन पर

कहाँ अब बुद्ध को सुनता है बामियान कोई

कवि -जयकृष्ण राय तुषार


चित्र सभार गूगल