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रविवार, 31 जनवरी 2021

एक ग़ज़ल -मगर संगम के लिए जल की त्रिधारा चाहिए

 

 



एक ग़ज़ल -

मगर संगम के लिए जल की त्रिधारा चाहिए 


उसको धरती ,चाँद ,सूरज और सितारा चाहिए 

मुझको कुछ कागज ,कलम और दोस्त प्यारा चाहिए 


डूबने वाला नदी में शेर हो या आदमी 

बच निकलने के लिए सबको किनारा चाहिए 


मौसमों की मापनी हीरे की हो या स्वर्ण की 

सच बताने के लिए उसको भी पारा चाहिए 


हर नदी का जल है पावन हर नदी में पुण्य है 

मगर संगम के लिए जल की त्रिधारा चाहिए 


प्लास्टिक की स्लेट पर आलेख का सौंदर्य क्या 

काठ की पट्टी है मेरी बस पचारा चाहिए 


सिर्फ़ कुर्सी के लिए षड्यन्त्र और - जलसे जुलूस 

अब देश की समृद्धि हो जिससे वो नारा चाहिए 

कवि /शायर 

जयकृष्ण राय तुषार 

संगम प्रयागराज चित्र साभार गूगल 



बुधवार, 27 जनवरी 2021

एक ग़ज़ल -पूनम की रात चाँद बहुत सादगी में है

 

चित्र -साभार गूगल 

चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -

पूनम की रात चाँद बहुत सादगी में है 


ये सारा आसमान  आज दिल्लगी में है 

पूनम की रात चाँद बहुत सादगी में है 


लिखता हूँ ,फाड़ता हूँ ,मिटाता हूँ हर्फ़ को 

कागज ,कलम ,दवात मेरी ज़िंदगी में है 


आँखें किसी की नम हो तो अपनी रूमाल दे 

इतनी तमीज़  आज कहाँ आदमी में है 


कोशिश  है मेरा शेर जमाने को याद हो 

शायर की  शायरी तो इसी तिश्नगी में है 


कवि /शायर जयकृष्ण राय तुषार 

रविवार, 17 जनवरी 2021

एक ग़ज़ल -यह मुल्क सभी का है देखभाल कीजिए

 

चित्र -साभार गूगल 


एक ताज़ा ग़ज़ल -

यह देश सभी का है देखभाल कीजिए 

यह मुल्क सभी का है देखभाल कीजिए 
हर बात पे मियाँ नहीं हड़ताल कीजिए 

पहले जब संविधान था खतरे में, थे कहाँ 
बासठ ,आपातकाल की पड़ताल कीजिए 

दुश्मन के साथ मिलके तमाशा न कीजिए 
पगड़ी को फाड़कर न अब रूमाल कीजिए 

सब अपने घर में चैन से तम्बू में राम थे 
उस दौर का भी आप जरा ख़्याल कीजिए 

कश्मीर में अब देखिये जन्नत के नज़ारे 
अब आबोहवा फिर से न बदहाल कीजिए 

सड़कें बनी हैं खूब ,दलाली भी कम हुई 
घर बैठे गैस मिल रही बस काल कीजिए 

जो आप कहें सच है जो हम कह दें बुरा है 
कुर्सी के लिए चेहरा नहीं लाल कीजिए 

कवि /शायर-जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र -साभार गूगल 


शनिवार, 16 जनवरी 2021

एक ताज़ा ग़ज़ल -मगर मतला तुम्हारे हुस्न के दीदार से निकला

 

चित्र -साभार गूगल 

एक ताज़ा ग़ज़ल -

मगर मतला तुम्हारे हुस्न के दीदार से निकला 

महल,परिवार सबकुछ छोड़कर घर-बार से निकला
दोबारा बुद्ध बनने कौन फिर दरबार से निकला
फ़क़ीरों की तरह मैं भी जमाना छोड़ आया हूँ
बड़ी मुश्किल से माया मोह के किरदार से निकला
चुनौती रेस की जब हो तो आहिस्ता चलो भाई
वही हारा जो कुछ सोचे बिना रफ़्तार से निकला
ग़ज़ल के शेर तो दुश्वारियों के बीच कह डाले
मगर मतला तुम्हारे हुस्न के दीदार से निकला
मैं अपने ही किले में कैद था तुमसे कहाँ मिलता
मेरा सबसे बड़ा दुश्मन मेरे परिवार से निकला
मैं शायर हूँ, कलेक्टर हूँ, या मैं कप्तान हूँ, तो क्या
मेरे होने का मतलब तो मेरे आधार से निकला
किसी महफ़िल का हिस्सा मैं कभी भी हो नहीं सकता
जहाँ मौसम था जैसा बस वही अशआर से निकला
वही डूबा जो मल्लाहों के कन्धों पर नदी में था
जो खुद से तैरकर डूबा वही मझधार से निकला
चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -खौफ़ मौसम का नहीं अब डर नहीं हिमपात का

 

 

चित्र -साभार गूगल 



रदीफ़ काफ़िए और मुश्किल विषय पर ग़ज़ल कहना /लिखना कठिन था इसलिए आँख को मजबूरन रखना पड़ा |

यह ग़ज़ल देश के शीर्ष नेतृत्व और तीनों सेनाओं के साथ सभी तरह के सुरक्षा बलों को समर्पित है ,जिनके अदम्य साहस और बलिदान से यह देश और हम सभी सुरक्षित हैं | जय हिन्द जय भारत !

एक ग़ज़ल -
खौफ़  मौसम का  नहीं  अब डर नहीं हिमपात का 

शकुनि का षड्यंत्र सारा जल गया खुद लाख में 
चीन का हर दाव  उल्टा पड़  गया लद्दाख में 

खौफ़  मौसम का  नहीं  अब डर नहीं हिमपात का 
अटल टनल के संग बनी सड़कें सभी लद्दाख  में

देश के गद्दार सेना का मनोबल तोड़ते 
अक्ल के अन्धे ये सावन ढूंढते वैशाख में 

बनके पोरस जो सिकन्दर से लड़ा इस  दौर  में 
क्यों वही सेवक खटकता है सभी की आँख में 

सरहदों पर देश की रक्षा में जो होते शहीद 
इक दिया  उनके  लिए हो  मंदिरों की ताख में 

दूर तक आकाश में अब गर्जना राफेल  की 
अब कहाँ  घुसपैठ का दम है किसी गुस्ताख़ में 

बिहार रेजीमेंट के जाबांज वीरों को नमन 
दुश्मनों को मारकर जो मिले पावन राख़  में 

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र -साभार गूगल