चित्र -साभार गूगल -गुरु गोरखनाथ
एक गीत -सारंगी जोगी मत छोड़ना
सारंगी जोगी मत छोड़ना । चंचल मन विषघट को फोड़ना । जीवन के तार जहाँ ढीले हों दुःख से जब नयन कभी गीले हों तार सभी कसकर के बाँधना गोरखबानी मन को साधना सुर की यह वंशी मत तोड़ना । माटी की देह देह नश्वर है गीता का श्लोक मन्त्र ईश्वर है माया की कैद में मछन्दर है तिरिया के देश महल अन्दर है गुरु के टूटे मनके जोड़ना । जयकृष्ण राय तुषार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें