चित्र -साभार गूगल |
एक गीत -
फिर गुलाबी फूल ,कलियों से लदेंगी नग्न शाखें
फिर गुलाबी
फूल ,कलियों से
लदेंगी नग्न शाखें |
पर हमारे
बीच होंगी नहीं
परिचित कई आँखें |
यह अराजक
समय ,मौसम
भूल जाएगा जमाना ,
फिर किताबों में
पढ़ेंगे गाँव का
मंज़र सुहाना ,
देखकर
हम मौन होंगे
तितलियों की कटी पाँखेँ |
झील में
खिलते कंवल,
मछली नदी में जाल होंगे ,
नहीं होगा
स्वर तुम्हारा
साज सब करताल होंगे ,
गाल पर रूमाल
होंगे
डबडबाई हुई आँखें |
ज्ञान और विज्ञान
का सब दम्भ
कैसे है पराजित ,
प्रकृति के
उपहास का यह
लग रहा परिणाम किंचित ,
अब घरों की
खिड़कियाँ हैं
जेल की जैसे सलाखें |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें