एक गीत-सारंगी जोगी मत छोड़ना
सारंगी
जोगी मत छोड़ना ।
अच्छे पथ पर
सबको मोड़ना ।
जीवन के तार
जहाँ ढीले हों
दुःख से जब नयन
कभी गीले हों
तार सभी कसकर
के बाँधना
गोरखवाणी
मन को साधना
सुर की यह वंशी
मत तोड़ना ।
माटी की देह
देह नश्वर है
गीता का श्लोक
मन्त्र ईश्वर है
माया की कैद में
मछन्दर है
तिरिया के देश
महल अन्दर है
गुरु के टूटे
मनके जोड़ना ।
जयकृष्ण राय तुषार
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