चित्र साभार गूगल |
एक गीत-
इस पठार पर
फूलों वाला
मौसम लाऊँगा ।
मैं अगीत के
साथ नहीं हूँ
गीत सुनाऊँगा ।
तुलसी की
चौपाई
मीरा के पद पढ़ता हूँ,
आम आदमी
की मूरत
कविता में गढ़ता हूँ,
ताज़ा
उपमानों से
अपने छन्द सजाऊँगा ।
एक उबासी
गंध हवा में
दिन भर बहती है,
क़िस्सागोई से
हर संध्या
वंचित रहती है,
नदी
ढूँढकर मैं
हिरनी की प्यास बुझाऊँगा ।
मौन लोक में
लोकरंग का
स्वर फिर उभरेगा,
ठुमरी भूला
मगर
कभी तो मौसम सुधरेगा,
मैं गोकुल
बरसाने
जाकर वंशी लाऊँगा ।
कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
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