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चित्र साभार गूगल |
फूलों से श्रृंगार कर मौसम हुआ अनंग
होली के हुड़दंग में काशी पीये भंग
गली गली फगुआ सुने जोगीरा के बोल
इंद्रधनुष से हो गए सबके सुर्ख कपोल
साधू, संत, गृहस्थ सब मना रहे त्यौहार
होली सिखलाती हमें सब रंगो से प्यार
तन मन रंगना भूलकर बैठे पथिक उदास
भक्ति सरोवर खिल रहा बरसाने के पास
ब्रज पढ़ता है सूर को काशी तुलसीदास
बस प्रयाग में ही मिलीं यमुना, गंगा पास
रिश्ते और समाज के मरहम हैं त्यौहार
लोकरंग के साथ में देते हैं उपहार
सबकी अपनी बाँसुरी सबके अपने राग
अपनी सारंगी लिए वैरागी मन जाग
टेसू, इत्र, ग़ुलाल से खुश गोपी, गोपाल
अपनी धुन में बज रहे उद्धव के करताल
केरल, पटना, चेन्नई, दिल्ली और भोपाल
कुछ उदास कुछ रंग गए राजनीति के गाल
धूल भरी पगडंडियों पर रंगों का खेल
उम्र जाति बंधन नहीं सबका सबसे मेल
बचे रहें ये रंग सब, बचा रहे संसार
हिंसा होली में जले, बचे शांति और प्यार
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |
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