चित्र साभार गूगल |
एक गीत -मोक्ष कहाँ देता है धाम कोई
सबको
सिंहासन ही चाहिए
पर साथी कहना मत काम कोई।
मौसम के
हरकारे झूठे
चुप रहते गर्मी,बरसातों में,
खेतोँ को
रौंद रहे नंदी
बैठा है सूदखोर खातों में,
जैसी करनी
वैसी भरनी
मोक्ष कहाँ देता है धाम कोई ।
एकलव्य हो
चाहे लवकुश
वन का ही कंदमूल खाना है,
राजा के
हर उत्सव,मंगल में
जोर-जोर् तालियाँ बजाना है,
सीता को
आग से बचाने
कब आया पुरुषोत्तम राम कोई।
सबके अपने
मेनिफेस्टो
दिल्ली, बंगाली, गुजराती,
सूरज को
छूने की ज़िद में
जलता हर युग में सम्पाती,
मंत्र वही
अलग बस पताका
कांग्रेस,सोशलिस्ट,दक्षिण या वाम कोई।
साहब की
अभी वही टाई
कदम कदम पर अफसरशाही,
दफ़्तर में
सब कुछ हैँ बाबू
जनता की जेब से उगाही,
लूटतंत्र,
लोकतंत्र, खादी
किसको हिम्मत बोले नाम कोई ।
सूट-बूट
वालों को टेंडर
वोट बैंक वालों को राशन,
नौकरियाँ
बन्द कारखाने
कागज पर कोरे आश्वासन,
शहरों में
फ्लैट बिके मंहगे
खेत लिया कौड़ी के दाम कोई।
कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र सभार गूगल
चित्र साभार गूगल |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें