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रविवार, 2 मई 2021

एक ग़ज़ल -अब टूटते रिश्तों को बचाने का समय है

  

चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -अभी मुल्क बचाने का समय है 

गलती है कहाँ यह न गिनाने का समय है 
मिल जुल के अभी मुल्क बचाने का समय है 

जो छोड़ गए उनको भी हम याद करेंगे 
फिलहाल अभी ग़म को भुलाने का समय है 

जो आँख में आँसू लिए बैठे हैं घरों में 
दुख बाँटके उनका ये हँसाने का समय है 

बोतल में बिके पानी हवा बेच रहे हैं 
अब नीम औ पीपल को लगाने का समय है  

आँधी ये किसी मुल्क की साज़िश का है हिस्सा  
शाखों पे खिले फूल बचाने का समय है 

यह वक्त पराजित हो ये कोशिश हो हमारी 
जीवन का हरेक मंत्र बताने का समय है 

है कोई मसीहा कोई शैतान बना है 
हैवान को इंसान बनाने का समय है 

एक पेड़ नहीं वन में ही ये आग लगी है 
अब राग तो मल्हार सुनाने का समय है 

दरिया की लहर तोड़ के साहिल को बहो तुम 
हर खेत की अब प्यास बुझाने का समय है 

असहाय नहीं छोड़िए घर बार मोहल्ला 
अब टूटते रिश्तों को बचाने का समय है 

कवि /शायर -जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल 

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