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रविवार, 2 मई 2021

 

चित्र -साभार गूगल -गुरु गोरखनाथ 


एक गीत -सारंगी जोगी मत छोड़ना

सारंगी जोगी मत छोड़ना । चंचल मन विषघट को फोड़ना । जीवन के तार जहाँ ढीले हों दुःख से जब नयन कभी गीले हों तार सभी कसकर के बाँधना गोरखबानी मन को साधना सुर की यह वंशी मत तोड़ना । माटी की देह देह नश्वर है गीता का श्लोक मन्त्र ईश्वर है माया की कैद में मछन्दर है तिरिया के देश महल अन्दर है गुरु के टूटे मनके जोड़ना । जयकृष्ण राय तुषार

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