चित्र -साभार गूगल |
आस्था और प्रेम के दोहे
तम के आँगन को मिले पावन ज्योति अमन्द
केसर ,चन्दन शुभ लिखें घर -घर हो मकरंद
हे मैहर की शारदा हे विन्ध्याचल धाम
मेरी पावन आस्था करती रहे प्रणाम
सरयू उठकर भोर में जपती सीताराम
वंशी पर मोहित हुई वृन्दावन की शाम
निर्मल हो आकाश यह धरा ,नदी के कूल
जन गण मन गाते रहें बच्चों के स्कूल
हल्दी के छापे लगें कोहबर गाये गीत
अनब्याहे हर स्वप्न को मिले सलोने मीत
बंजर धरती ,खेत की लौटे फिर मुस्कान
काशी अस्सी घाट पर खाये मघई पान
तन -मन सब निर्मल करे पावन धूनी आग
गंगा माँ की आरती करता रहे प्रयाग
पूजा संध्या प्रार्थना संतों का उपदेश
आते अनगिन भक्त जन बिन चिट्ठी सन्देश
जूड़े सोये गाल पर इतर लगे रूमाल
नदियों में फिर पड़ गए मछुआरों के जाल
वातायन खुलने लगे लगे सुहानी भोर
नींद न आती रात में देखे चाँद चकोर
नाव किनारे आ गई लेकर ताजे फूल
मन के माफ़िक बह रहीं धाराएँ प्रतिकूल
धरती रति के वेश में मौसम हुआ अनंग
जोगन आँखों में भरे जाने कितने रंग
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -साभार गूगल |
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