चित्र -साभार गूगल संगम प्रयागराज |
एक आस्था का गीत -संगम/कुम्भ
मिलन हो दोबारा
हमारा तुम्हारा ।
ओ संगम की रेती
ओ गंगा की धारा ।
ये यमुना की लहरें
किले की कहानी,
यहाँ संत ,साधू
यहाँ ब्रह्म ज्ञानी,
ये भक्ति का रंग
सारे रंगों से प्यारा ।
यहाँ लेटे हनुमान
की वन्दना है,
त्रिधारा से नदियों के
संगम बना है,
है इनकी कृपा से
हवन-यज्ञ सारा ।
सभा इंद्र की
इसकी महिमा को गाती,
छटा कुम्भ की
देव,मनुजों को भाती ,
कहीं भी नहा लो
है अमृत की धारा ।
ये तम्बू ये प्रवचन
अमौसा का मेला,
यहाँ भूला-बिसरा
न रहता अकेला,
जो खोया सभी ने
उसी को पुकारा ।
भारद्वाज ऋषि
राम सिय की कथाएँ,
यहाँ जन्म लेती हैं
मंगल ऋचाएँ,
इसे योगियों ने
सजाया सँवारा ।
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
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