एक ताज़ा ग़ज़ल -
यह देश सभी का है देखभाल कीजिए
यह मुल्क सभी का है देखभाल कीजिए
हर बात पे मियाँ नहीं हड़ताल कीजिए
पहले जब संविधान था खतरे में, थे कहाँ
बासठ ,आपातकाल की पड़ताल कीजिए
दुश्मन के साथ मिलके तमाशा न कीजिए
पगड़ी को फाड़कर न अब रूमाल कीजिए
सब अपने घर में चैन से तम्बू में राम थे
उस दौर का भी आप जरा ख़्याल कीजिए
कश्मीर में अब देखिये जन्नत के नज़ारे
अब आबोहवा फिर से न बदहाल कीजिए
सड़कें बनी हैं खूब ,दलाली भी कम हुई
घर बैठे गैस मिल रही बस काल कीजिए
जो आप कहें सच है जो हम कह दें बुरा है
कुर्सी के लिए चेहरा नहीं लाल कीजिए
कवि /शायर-जयकृष्ण राय तुषार
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