चित्र साभार गूगल |
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(हिन्दी के महत्वपूर्ण कवियों का ब्लॉग)
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करवा चौथ की सुमंगल कामनाओं के साथ
पुरानी रचनाएँ
एक आज करवा चौथ का दिन है
आज करवा चौथ
का दिन है
आज हम तुमको संवारेंगे।
देख लेना
तुम गगन का चांद
मगर हम तुमको निहारेंगे।
पहनकर
कांजीवरम का सिल्क
हाथ में मेंहदी रचा लेना,
अप्सराओं की
तरह ये रूप
आज फुरसत में सजा लेना,
धूल में
लिपटे हुए ये पांव
आज नदियों में पखारेंगे।
हम तुम्हारा
साथ देंगे उम्रभर
हमें भी मझधार में मत छोड़ना,
आज चलनी में
कनखियों देखना
और फिर ये व्रत अनोखा तोड़ना ,
है भले
पूजा तुम्हारी ये
आरती हम भी उतारेंगे।
ये सुहागिन
औरतों का व्रत
निर्जला, पति की उमर की कामना
थाल पूजा की
सजा कर कर रहीं
पार्वती शिव की सघन आराधना,
आज इनके
पुण्य के फल से
हम मृत्यु से भी नहीं हारेंगे।
दो
जमीं के चांद को जब चांद का दीदार होता है
कभी सूरत कभी सीरत से हमको प्यार होता है
इबादत में मोहब्बत का ही इक विस्तार होता है
हम करवा चौथ के व्रत को मुकम्मल मान लेते हैं
जमीं के चांद को जब चांद का दीदार होता है
तेरे दीदार से ही चाँद करवा चौथ होता है
तुम्हारी इक झलक से ईद का त्यौहार होता है
निराजल रह के जब पति की उमर की ये दुआ मांगें
सुहागन औरतों का स्वप्न तब साकार होता है
यही वो चांद है बच्चे जिसे मामा कहा करते
हकीकत में मगर रिश्तों का भी आधार होता है
शहर के लोग उठते हैं अलार्मों की आवाजों पर
हमारे गांव में हर रोज ही जतसार होता है
हमारे गांव में कामों से कब फुरसत हमें मिलती
कभी हालीडे शहरों में कभी इतवार होता है।
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
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मित्रों आप सभी को रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनायें
बुरा न मानो होली है यह सनातन पर्व बना रहे सभी के जीवन में खुशियों का रंग बिखेरता रहे.
एक ग़ज़ल -होली में
चित्र साभार गूगल |
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एक
चित्र साभार गूगल |
एक गज़ल -तितलियाँ अच्छी लगीं
कूकती कोयल, बहारें, तितलियाँ अच्छी लगीं
उसकी यादों में गुलों की वादियाँ अच्छी लगीं
जागती आँखों ने देखा इक मरुस्थल दूर तक
स्वप्न में जल में उछ्लतीं मछलियाँ अच्छी लगीं |
मूंगे -माणिक से बदलते हैं कहाँ किस्मत के खेल
हाँ मगर उनको पहनकर उँगलियाँ अच्छी लगीं |
देखकर मौसम का रुख तोतों के उड़ते झुंड को
पके गेहूं की सुनहरी बालियाँ अच्छी लगीं |
दूर थे तो सबने मन के बीच सूनापन भरा
उसके मिसरे पर मिली जब दाद तो मैं जल उठा
अपनी ग़ज़लों पर हमेशा तालियाँ अच्छी लगीं |
जब जरूरत हो बदल जाते हैं शुभ के भी नियम
घर में जब चूहे बढे तो बिल्लियाँ अच्छी लगीं |
चित्र -गूगल से साभार
[मेरी यह ग़ज़ल आजकल फरवरी 2007 में प्रकाशित है ]
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एक होली गीत -रंग वो क्या जो छूट गया
बरसाने की लट्ठमार होली चित्र साभार गूगल |
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एक गीत -इस चिड़िया के उड़ जाने पर
तिरंगा -जय हिन्द जय भारत वन्देमातरम |
एक पुरानी ग़ज़ल
एक ग़ज़ल देश के नाम -
कहीं से लौट के आऊँ तुझी से प्यार रहे
हवा ,ये फूल ,ये खुशबू ,यही गुबार रहे
कहीं से लौट के आऊँ तुझी से प्यार रहे
मैं जब भी जन्म लूँ गंगा तुम्हारी गोद रहे
यही तिरंगा ,हिमालय ये हरसिंगार रहे
बचूँ तो इसके मुकुट का मैं मोरपंख बनूँ
मरूँ तो नाम शहीदों में ये शुमार रहे
ये मुल्क ख़्वाब से सुंदर है जन्नतों से बड़ा
यहाँ पे संत ,सिद्ध और दशावतार रहे
मैं जब भी देखूँ लिपट जाऊँ पाँव को छू लूँ
ये माँ का कर्ज़ है चुकता न हो उधार रहे
भगत ,आज़ाद औ बिस्मिल ,सुभाष भी थे यहीं
जो इन्क़लाब लिखे सब इन्हीं के यार रहे
आज़ादी पेड़ हरा है ये मौसमों से कहो
न सूख पाएँ परिंदो को एतबार रहे
तमाम रंग नज़ारे ये बाँकपन ये शाम
सुबह के फूल पे कुछ धूप कुछ 'तुषार 'रहे
कवि /शायर -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -साभार गूगल |
चित्र -साभार गूगल -भारत के लोकरंग |
महाधिवक्ता उत्तर प्रदेश डॉ. अजय कुमार मिश्र को स्वामी योगानंद जी की पुस्तक भेंट करते हुए |
उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता डॉ. अजय कुमार मिश्र जी, महाधिवक्ता बनने के पूर्व उच्चतम न्यायालय के सीनियर एडवोकेट रहे. वकालत के अतिरिक्त माननीय की रूचि भारतीय दर्शन, अध्यात्म, और भारतीय संस्कृति और परम्परा में है. साहित्य के प्रति अभिरूचि भी आपकी एक विशेषता है.इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति माननीय श्री अश्वनी कुमार मिश्र जी आपके अनुज हैं. आपका जन्म 1958 में प्रयाग में हुआ था. आप इलाहाबाद हाईकोर्ट के प्रतिष्ठित न्यायमूर्ति स्मृतिशेष एस. आर. मिश्र के ज्येष्ठ पुत्र हैं .श्री वृन्दावन मिश्र जी माननीय महाधिवक्ता जी के सुपुत्र हैं और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रतिष्ठित वकील हैं.आज मुझे माननीय महाधिवक्ता उत्तर प्रदेश से मिलने और उनको पुस्तक भेंट करने का सुअवसर मिला.माननीय महाधिवक्ता महोदय के प्रति मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ.
महाधिवक्ता उत्तर प्रदेश डॉ.अजय कुमार मिश्र को पुस्तक भेंट करते हुए |
डॉ. अजय कुमार मिश्र महाधिवक्ता उत्तर प्रदेश |