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शुक्रवार, 22 अगस्त 2025

एक गीत -सपने फूलों के

 

चित्र साभार गूगल

एक गीत -सपने फूलों के 


यह माटी की 
देह, देह के 
सपने फूलों के.
फिर भी 
लिखते रहे 
विवश हम गीत बबूलों के.

प्यास 
हिरन की नदी
ढूंढती पावों में छाले,
माया की 
अंधी सुरंग में 
सोये रहे उजाले,
फिर फिर 
वही कहानी 
किस्से अपनी भूलों के.

जीवन 
जाल समेटे 
बैठा रहा मछलियों में,
मौसम 
गाता रहा हमेशा 
फूल तितलियों में,
अपनी सुविधा 
देख बदलते 
नियम उसूलों के.

कवि जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल


मंगलवार, 19 अगस्त 2025

निदेशक उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र श्री सुदेश शर्मा जी को पुस्तक भेंट

 

 

श्री सुदेश शर्मा,निदेशक उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र


कोर्ट से वापस लौटते हुए आज उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के नए निदेशक आदरणीय श्री सुदेश शर्मा जी से सहृदय मुलाक़ात हुई. निदेशक महोदय के साथ फोटो भाई आशीष श्रीवास्तव जी ने क्लिक किया,उनके प्रति भी हृदय से आभार.




शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

एक ग़ज़ल -यही तिरंगा, हिमालय, ये हरसिंगार रहे

  

तिरंगा 

आज 15 अगस्त है भारत की आजादी /स्वतंत्रता का स्वर्णिम दिन. करोड़ों भारतीयों के बलिदान के बाद यह आजादी हमें मिली है. हम भाग्यशाली हैँ जिस देश मेँ गंगा है हिमालय है, गीता है,, रामायण है, प्रभु श्रीराम हैँ. यह असंख्य जीवनदायिनी नदियों का ऋषियों का देश है. समस्त देशवासियों प्रवासी भारतीयों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें शुभकामनायें. यह तिरंगा सदैव अपराजेय रहे. वन्देमातरम 



तिरंगा -जय हिन्द जय भारत वन्देमातरम 

एक पुरानी ग़ज़ल 


एक ग़ज़ल देश के नाम -


कहीं से लौट के आऊँ तुझी से प्यार रहे


हवा ,ये फूल ,ये खुशबू ,यही गुबार रहे 

कहीं से लौट के आऊँ तुझी से प्यार रहे 


मैं जब भी जन्म लूँ गंगा तुम्हारी गोद रहे 

यही तिरंगा ,हिमालय ये हरसिंगार रहे 


बचूँ तो इसके मुकुट का मैं मोरपंख बनूँ 

मरूँ  तो नाम शहीदों में ये शुमार रहे 


ये मुल्क ख़्वाब से सुंदर है जन्नतों से बड़ा 

यहाँ पे संत ,सिद्ध और दशावतार रहे 


मैं जब भी देखूँ लिपट जाऊँ पाँव को छू लूँ 

ये माँ का कर्ज़ है चुकता न हो उधार रहे 


भगत ,आज़ाद औ बिस्मिल ,सुभाष भी थे यहीं 

जो इन्क़लाब लिखे सब इन्हीं के यार रहे 


आज़ादी पेड़ हरा है ये मौसमों से कहो 

न सूख पाएँ परिंदो को एतबार रहे 


तमाम रंग नज़ारे ये बाँकपन ये शाम 

सुबह के फूल पे कुछ धूप कुछ 'तुषार 'रहे 


कवि /शायर -जयकृष्ण राय तुषार 

झाँसी की रानी 


चित्र -साभार गूगल 


चित्र -साभार गूगल -भारत के लोकरंग