लेबल

गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

एक ग़ज़ल -सभी के पाँव के घुँघरू बजे तो टूट गए

 

चित्र साभार गूगल 

दिए बुझाती रही हैं सभी दिशाएं यहाँ 

उजाले किसकी अदालत में सच बताएँ यहाँ 


पढ़े लिखे भी यहाँ उलजुलूल बोल रहे 
बिना तमीज़ के होती रहीं सभाएं यहाँ 

हरेक बज़्म में सब तर्जुमा सुनाते रहे 
तमाम पात्र वही एक सी कथाएँ यहाँ 

बला का शोर था महफ़िल में लौट आए सभी 
हुनर से ज्यादा परखते हैं सब अदाएँ यहाँ 

सभी के पाँव के घुंघरु बजे तो टूट गए 
अब तीन ताल पे किसको मियाँ नचाएँ यहाँ 

चित्र साभार गूगल 



शायर 
जयकृष्ण राय तुषार 

2 टिप्‍पणियां:

  1. उजाले की कोई सुनवाई नहीं होती, अब अंधेरों का ही बोलबाला है, सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं