संगम प्रयागराज चित्र सभार गूगल |
एक अस्था की ग़ज़ल - संगम/महाकुम्भ
कुछ दरिया,कुछ कश्ती में कुछ रेत में दीपक जलते हैँ
संगम का अलबेला मौसम आओ हम भी चलते हैँ
भारद्वाज ऋषि का आश्रम है चित्रकूट का मार्ग यही
यह प्रयाग है साधो इसमें द्वादश माधव मिलते हैँ
श्रृंगवेरपुर यहीं यहीं पर केवट का संवाद मधुर
माया जिसकी दासी राक्षस उसी राम को छलते हैँ
अमृत कलश यहीं छलका था महाकुम्भ का पर्व यहाँ
धर्म अर्थ और काम मोक्ष के सब गुण इसमें मिलते हैँ
नागा,दंडी, सिद्ध,अघोरी,पंडे और पुरोहित भी
वृद्ध,अपाहिज,बालक पैदल गंगा तट पर चलते हैँ
धुूनी,प्रवचन,भंडारे हैँ,दान पुण्य का क्षेत्र यहाँ
इसमें लौकिक और अलौकिक ब्रह्मकमल भी खिलते हैँ
पौष ,माघ पूर्णिमा मकर,मौनी वसंत की महिमा है
कल्पवास में सदगृहस्थ भी विधि विधान में ढलते हैँ
मल्लाहों के साथ लहर पर जल पंछी के कौतुक हैँ
इसका वैभव पुण्य देखकर इंद्र देव भी जलते हैँ
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र सभार गूगल |
वाह! प्रयाग राज का मनोहारी वर्णन
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