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शनिवार, 6 मार्च 2021

एक ग़ज़ल - मेरी क़िस्मत में नहीं इस झील का शतदल रहा

 

 



चित्र -साभार गूगल 

क ग़ज़ल -

मेरी क़िस्मत में नहीं इस झील का शतदल रहा

मेरी क़िस्मत में नहीं इस झील का शतदल रहा

मैं भी हातिम था मगर हर रास्ता दलदल रहा


एक ही दरिया से निकले थे सभी पानी लिए

आसमां में मेरे पानी के बिना बादल रहा


सिद्धियाँ थी दास उसकी वह तो परमहंस था 

मूर्ति से संवाद उसका,कहते सब पागल रहा 


नायिका को काव्य में लिखते थे मृगनयनी सभी

गाय के घी से बना उस दौर में काजल रहा


मैं कुशल तैराक था पर भाग्य पर निर्भर रहा

एक छोटी सी नदी की धार में असफ़ल रहा


सच परखने के लिए सीता को किसने अग्नि दी

थी नहीं गीता मगर दरिया में गंगाजल रहा


राम जी तम्बू में थे सरयू बहुत लाचार थी

पर अदालत की किताबों में सुनहरा हल रहा

जयकृष्ण राय तुषार



चित्र -साभार गूगल 

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