साहित्यिक समाचार
उपन्यास ‘प्रेम की भूतकथा’ पर गोष्ठी
इतिहासरस और किस्सागोई का अदभुत उदाहरण है प्रेम की भूतकथा- दूधनाथ सिंह
सबसे बाएं उपन्यासकार विभूति नारायण राय , प्रोफ़ेसर अली अहमद फातमी ,डॉ o सरवत खान , प्रो० सन्तोष भदौरिया और बोलते हुए प्रो० दूधनाथ |
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र द्वारा ‘ख्यातनाम साहित्यकार श्री विभूति नारायन राय के ज्ञानपीठ से प्रकाशित उपन्यास ^प्रेम की भूत कथा’ पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार दूधनाथ सिंह ने कहा कि यह उपन्यास उपन्यासकार के अनुभव जगत में कैसे आया यह महत्वपूर्ण है, पढ़ कर मैं बहुत चकित हुआ विभूति नारायन राय उम्दा किस्म के किस्सागो हैं, उन्होंने प्रेम की भूतकथा में नयी डिवाइस और तकनीक का इस्तेमाल किया है उपन्यास में अदभुत कथारस है, मोड है, संरचनाएं हैं। रविन्द्र नाथ टैगोर ने इसे इतिहासरस कहा है। उपन्यास में इतिहासरस से अदभुत साक्षात्कार होता है। उन्होंने अपने पूर्व के उपन्यासों के कथा तत्व और शिल्प से स्पष्ट डिपार्चर किया है, उपन्यास का गद्य कवित्य मय है। मुख्य वक्ता प्रो. ए.ए. फातमी ने कहा कि, उपन्यास में न्याय व्यवस्था पर गहरा तंज है, प्रेम के किस्से के साथ जिन्दगी के कशमकश को भी साथ रखा गया है। प्रेम कथा सामाजिक सरोकार को साथ लेकर चलती है। उदयपुर की डा0 सरवत खान जिन्होंने उपन्यास का उर्दू में अनुवाद किया है ने कहा कि आज कल बहुत कुछ लिखा जा रहा है किन्तु मुहब्बत कि कहानिया नजर नहीं आती, विभूति जी के प्रेम चित्रण में फन झलकता है। यह उपन्यास जादुई यथार्थवाद का सफल नमूना है। उन्होंने इस उपन्यास को उर्दू वालों के लिए बहुत अहम बताया। उपन्यास के लेखक विभूति नारायन राय ने अपनी रचना प्रकिया को साझा करते हुए कहा कि, गुलेरी की कहानी उसने कहा था में प्रेम का उत्सर्ग मेरे लिए हमेशा रोमांचकारी रहा। उस कहानी में मेरे इस उपन्यास के लेखन में उत्प्रेरक का काम किया यह उपन्यास मेरे कई वर्षों के शोध का परिणाम है। उन्होंने इसके पढ़े जाने और पसंद किए जाने के लिए पाठक वर्ग का आभार भी व्यक्त किया। वक्ता हिमांशु रंजन ने प्रेम की भूतकथा को बडे कैनवास की कथा कहा, उन्होंने कहा कि उपन्यास कार ने इतिहास और परंपरा से ग्रहण करने का विवेक रखा है, शिल्प के लिहाज से उनका यह बहुत महत्वपूर्ण उपन्यास है। डॉ. गुफरान अहमद खान ने उर्दू वालों के लिए इस उपन्यास को एक जरूरी उपन्यास कहा। गोष्ठी का संयोजन एवं संचालन क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी प्रो. संतोष भदौरिया ने किया। स्वागत डॉ. प्रकाश त्रिपाठी ने किया। गोष्ठी में प्रमुख रूप से जिआउल हक, हरिश्चन्द्र पाण्डेय, हरिश्चन्द्र अग्रवाल, नंदल हितैषी, फखरूल करीम, जेपी मिश्रा, नीलम शंकर, संतोष चतुर्वेदी,सुरेद्र राही, असरफ अली बेग, प्रवीण शेखर, हीरालाल, अविनाश मिश्रा, रविनंदन सिंह, शैलेन्द्र सिंह, मनोज सिंह, अनिल भदौरिया, बी.एन. सिंह सहित बडी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।
रिपोर्ट -प्रो० सन्तोष भदौरिया
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