एक गीत-भींग रहे कुरुई में फूल
नयनों के
खारे जल से
भींग रहे अँजुरी में फूल ।
वासंती पाठ
पढ़े मौसम
परदेसी राह गया भूल ।
भ्रमरों के
घेरे में धूप
गाँठ बँधी हल्दी से दिन,
खिड़की में
झाँकते पलाश
फूलों की देह चुभे पिन,
माँझी के
साथ खुली नाव
धाराएँ ,मौसम प्रतिकूल ।
सपनों में
खोल रहा कौन
चिट्ठी में टँके हुए पाटल,
प्रेममग्न
सुआ हरे पाँखी
छोड़ गए शाखों पे फल,
पियराये
सरसों के खेत
मेड़ो पे टूटते उसूल ।
सभी चित्र गूगल से साभार
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-01-2020) को "तान वीणा की माता सुना दीजिए" (चर्चा अंक - 3595) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नयनों के
जवाब देंहटाएंखारे जल से
भींग रहे अँजुरी में फूल ।
वाह तुषार जी ! बहुत अच्छा लिखते हैं आप | विरह का मार्मिक दृश्य साकार करता मर्मस्पर्शी काव्य चित्र | वाह और सिर्फ वाह | हार्दिक शुभकामनाएं|
गहन शब्दों के साथ बेहतरीन शब्द रचना
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