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पद्मश्री शोभना नारायण जी को पुस्तक भेंट करते हुए साथ में प्रयागराज संग्रहालय के निदेशक श्री राजेश प्रसाद |
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श्री राजेश प्रसाद जी निदेशक संग्रहालय को पुस्तक भेंट करते हुए |
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पद्मश्री शोवना नारायण एवं निदेशक इलाहाबाद संग्रहालय श्री राजेश प्रसाद और मैं |
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पद्मश्री शोभना नारायण जी को पुस्तक भेंट करते हुए साथ में प्रयागराज संग्रहालय के निदेशक श्री राजेश प्रसाद |
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श्री राजेश प्रसाद जी निदेशक संग्रहालय को पुस्तक भेंट करते हुए |
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पद्मश्री शोवना नारायण एवं निदेशक इलाहाबाद संग्रहालय श्री राजेश प्रसाद और मैं |
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भारत माता |
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चित्र साभार गूगल |
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निराला |
बैसवारे की मिट्टी में विख्यात कवि लेखक संपादक हुए हैं जिनमें निराला, रामविलास शर्मा, रसखान, नूर, मुल्ला दाऊद रमई काका, शिव मंगल सिंह सुमन, शिव बहादुर सिंह भदौरिया, रूप नारायण पांडे माधुरी के संपादक आदि. इसी मिट्टी को समर्पित एक गीत
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रसखान |
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चित्र साभार गूगल स्मृतिशेष जगजीत सिंह |
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चित्र साभार गूगल |
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चित्र साभार गूगल |
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चित्र साभार गूगल |
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श्रीराम |
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श्रीमद भागवत गीता |
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सभार गूगल |
एक ताज़ा - ग़ज़ल
न पेड़ है न परिंदों का अब मकान कोई
सुकून बख़्स ज़मीं है न आसमान कोई
चलो सितारों में ढूँढें नया ज़हान कोई
तमाम नक़्शे घरों के बदल गए हैँ यहाँ
न पेड़ हैँ न परिंदो का अब मकान कोई
तमाम उम्र मुझे,मंज़िलें मिली ही नहीं
मुझे पता ही न था रास्ता आसान कोई
अजीब शाम कहीं महफ़िलों का दौर नहीं
बुरी ख़बर के बिना है कहाँ विहान कोई
ज़मीं पे रहके नज़र भी सिमट गयी है बहुत
अब अपने खेतोँ में रखता नहीं मचान कोई
हवाएं गर्म हैँ,मौसम को ये खबर ही कहाँ
नहीं अब मत्स्य,परी जल के दरमियान कोई
तमाम दाग़ हैँ अब सभ्यता के दामन पर
कहाँ अब बुद्ध को सुनता है बामियान कोई
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र सभार गूगल |
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चित्र सभार गूगल |
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चित्र सभार गूगल |
एक ग़ज़ल -सुर्खाब ग़ज़ल
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चित्र सभार गूगल |
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संगम प्रयागराज चित्र सभार गूगल |
एक अस्था की ग़ज़ल - संगम/महाकुम्भ
कुछ दरिया,कुछ कश्ती में कुछ रेत में दीपक जलते हैँ
संगम का अलबेला मौसम आओ हम भी चलते हैँ
भारद्वाज ऋषि का आश्रम है चित्रकूट का मार्ग यही
यह प्रयाग है साधो इसमें द्वादश माधव मिलते हैँ
श्रृंगवेरपुर यहीं यहीं पर केवट का संवाद मधुर
माया जिसकी दासी राक्षस उसी राम को छलते हैँ
अमृत कलश यहीं छलका था महाकुम्भ का पर्व यहाँ
धर्म अर्थ और काम मोक्ष के सब गुण इसमें मिलते हैँ
नागा,दंडी, सिद्ध,अघोरी,पंडे और पुरोहित भी
वृद्ध,अपाहिज,बालक पैदल गंगा तट पर चलते हैँ
धुूनी,प्रवचन,भंडारे हैँ,दान पुण्य का क्षेत्र यहाँ
इसमें लौकिक और अलौकिक ब्रह्मकमल भी खिलते हैँ
पौष ,माघ पूर्णिमा मकर,मौनी वसंत की महिमा है
कल्पवास में सदगृहस्थ भी विधि विधान में ढलते हैँ
मल्लाहों के साथ लहर पर जल पंछी के कौतुक हैँ
इसका वैभव पुण्य देखकर इंद्र देव भी जलते हैँ
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र सभार गूगल |