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| चित्र साभार गूगल |
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| चित्र साभार गूगल |
एक ताज़ा गीत.कलम ख़ामोश थी आज कुछ कोशिश किए.
कोई चिड़िया
नीलगगन से
मेरे आँगन में आ जाये.
मेरे प्रेम गीत को
फिर से फूल
पत्तियाँ, मौसम गाये.
बाहर का मौसम
अच्छा है
लेकिन मन में धुंध, तपन है,
चाँद कहीं पर
सोया होगा
खाली -खाली नीलगगन है,
खुशबू ओढ़े
बैठे होंगे
घाटी में पेड़ों के साये.
हिरन दौड़ते
तेज धूप में
नदियों की भुरभुरी रेत में,
फसलों से
बतियाते होंगे
कितने राँझे -हीर खेत में,
हरी भरी मेंड़ों पर
कोई जोड़ा
नीलकंठ आ जाये.
सूने वन में
बनजारों के संग
वंशी, मादल का मिलना,
उस पठार की
भूमि धन्य है
जिसमें हो फूलों का खिलना,
गंगा की धारा में
जैसे कोई
मांझी शंख बजाये.
कवि जयकृष्ण राय तुषार
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| चित्र साभार गूगल |
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