चित्र साभार गूगल |
उर्दू ग़ज़ल की शान है महफ़िल महल में है
मिट्टी का लोक रंग तो हिंदी ग़ज़ल में है
नदियों के साथ झील भी, दरिया भी,कूप भी
लेकिन कहाँ वो पुण्य जो गंगा के जल में है
मेरी ग़ज़ल तमाम रिसालों में छप गयी
अनजान है इक दोस्त जो घर के बगल में है
दरिया में चाँद देखके सब लोग थे मगन
आँखों को सच पता था ये छाया असल में है
धरती को फोड़ करके निकलते हैं सारे रंग
सरसों का पीला रंग भी धानी फसल में है
खुशबू के साथ सैकड़ों रंगों के फूल हैं
रिश्ता गज़ब का दोस्तों कीचड़ कमल में है
वैसे शपथ लिए थे सभी संविधान की
लेकिन कहाँ ईमान का जज़्बा अमल में है
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
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