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रविवार, 2 जून 2024

एक प्रेम गीत -वीणा के साथ तुम्हारा स्वर हो

 

चित्र साधार गूगल 


एक गीत -वीणा के साथ तुम्हारा स्वर हो 

फूलों की 
सुगंध वीणा के 
साथ तुम्हारा स्वर हो.
इतनी सुन्दर 
छवियों वाला 
कोई प्यारा घर हो.

धान -पान के 
साथ भींगना 
मेड़ों पर चलना,
चिट्ठी पत्री 
लिखना -पढ़ना 
हँसकर के मिलना,
मीनाक्षी आंखें 
संध्या की,
पाटल सदृश अधर हो,

ताल-झील 
नदियों से 
पहले हम बतियाते थे 
कुछ बंजारे 
कुछ हम 
अपना गीत सुनाते थे,
हर राधा के 
स्वप्नलोक में 
कोई मुरलीधर हो.

इंद्रधनुष 
की आभा नीले 
आसमान में निखरी,
चलो बैठकर 
पढ़ें लोक में 
प्रेम कथाएँ बिखरी 
रमझिम 
बूंदों वाले मौसम में 
फिर साथ सफ़र हो.

सबकी चिंता 
सबका सुख दुःख 
मिलकर जीते थे,
निर्गुण गाते हुए 
ओसारे 
हुक्का पीते थे,
ननद भाभियों की 
गुपचुप 
फिर घर में इधर उधर हो.

कवि जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साधार गूगल