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शुक्रवार, 22 मार्च 2024

एक पुरानी ग़ज़ल - होली में

 

चित्र साभार गूगल 


चित्र साभार गूगल 


मित्रों आप सभी को रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनायें

बुरा न मानो होली है यह सनातन पर्व बना रहे सभी के जीवन में खुशियों का रंग बिखेरता रहे.

एक ग़ज़ल -होली में


न पहले की तरह मस्ती नहीं किरदार होली में
बिना शब्दों की पिचकारी के हैँ अख़बार होली में

न फगुआ है न चैता है नहीं करताल ढोलक है
भरे रिमिक्स गानों से सभी बाज़ार होली में

पुलिस, सैनिक हमारे पर्व में ड्यूटी निभाते हैँ
सदा खुशहाल उनका भी रहे परिवार होली में 

निराला, पंत, बच्चन, रामजी पांडे के दिन क्या थे
महादेवी के घर कवियों का था दरबार होली में 

सियासत की खुशामद कीजिए सच बोलिएगा मत
कहाँ अब व्यंग्य सुनती है कोई सरकार होली में

व्यवस्था न्याय की मँहगी, बिलंबित औ थकाऊ है
इसे मी लार्ड थोड़ा दीजिये रफ़्तार होली में 

नयन काजल लगाए रास्ते में छू गया कोई
गुलाबी हो गए मेरे सभी अशआर होली में

हमारा राष्ट्र सुंदर है हमारी संस्कृति अनुपम
हमारे राष्ट्र के दुश्मन जलें इस बार होली में 

शहर में बस गए बचपन के साथी गाँव सूने हैँ
अबीरें रख के तन्हा है मेरा घर द्वार होली में 

नहीं अब फूल टेसू के मिलावट रंग, गुझिया में
कहो मौसम से अब कोई न हो बीमार होली में 


नहीं अब कृष्ण, राधा हैँ न गोकुल, नन्द बाबा हैँ
कहाँ अब गोपियों सी भक्ति सच्चा प्यार होली में

नहीं चौपाल पर अब भाँग, सिलबट्टा न होरी है
न भाभी और देवर की बची मनुहार होली में

गली में झूम जोगीरा सुनाती मण्डली गायब
शिवाले पर नहीं पहले सी अब जयकार होली में

कवि जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल 



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