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चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-फ़साना ग़ज़ल में था
तन्हाइयों में क़ैद था आँसू भी जल में था
ग़म भी तमाम रंग में खिलते कमल में था
महफ़िल में सबके दिल को कोई शेर छू गया
शायर का इश्क,ग़म का फ़साना ग़ज़ल में था
घर के दिए हवा की शरारत से बुझ गए
जलता रहा वो शौक से गंगा के जल में था
राजा के साथ कीमती परदे बदल गए
दरबार में पुराना रवैया अमल में था
बासी हवा के साथ धुँआ रास्तों में था
कहने को मौसमों का नज़ारा बदल में था
महफ़िल में उसके नाम क़सीदे पढ़े गए
जिसका रदीफ़,काफ़िया, मतला हज़ल में था
भूखे थे आसमां में परिन्दे उदास थे
दाने जहाँ-जहाँ थे बिजूखा फसल में था
जब भी चुनाव आया ग़रीबों में वो दिखा
वैसे तो उसका ठौर-ठिकाना महल में था
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |
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