आप सभी को प्रणाम करते हुए एक ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ |इस ग़ज़ल कुछ नामों की प्रशंसा भी है इसका स्पष्टीकरण भी दे रहा हूँ |जीवन के किसी मोड पर कुछ गुरू ,शुभचिंतक मिल जाते हैं जो बिना परिचय के भी आपको बहुत कुछ आशीष दे जाते हैं |प्रोफ़ेसर सदानंद प्रसाद गुप्त जिनके द्वारा पुरस्कार सम्मान के साथ हिन्दी संस्थान में काव्य पाठ का अवसर मिला |डॉ0 उदय प्रताप सिंह अध्यक्ष हिंदुस्तानी एकेडमी ने मुझ पर भरोसा किया और एकेडमी का कुलगीत मुझसे लिखवाया |प्रोफ़ेसर ईश्वर शरण विश्वकर्मा जी ने मुझे सहज भाव से उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग का पैनल एडवोकेट बनाया |इन सभी गुरुजनों से जोडने वाला एक नाम है महन्थ दिग्विजय नाथ कालेज में हिन्दी के अध्यापक डॉ 0 नित्यानन्द श्रीवास्तव जी का |
मेरी छत पर इन चिड़ियों का हर दिन पानी -दाना है
यह भी तो एक प्यार -मोहब्बत जैसा ही अफ़साना है
झील का पानी ,पेड़ का साया मिल जाए तो अच्छा है
वरना पाँव में छाले लेकर राह में चलते जाना है
एक तिलस्मी जादूगर सा अपना यह आकाश भी है
हर दिन डूबे सूरज इसमें चाँद को हर दिन आना है
सदानन्द जी राष्ट्रधर्म और हिन्दी के उद्गाता हैं
उनका मन तो राष्ट्रप्रेम की झील में तालमखाना है
उदय प्रताप सिंह ने प्रयाग का गौरव मान बढ़ाया है
गुरु गोरख के संग हिन्दी का इनको मान बढ़ाना है
ईश्वर शरण विश्वकर्मा जी का उज्ज्वल इतिहास रहा
शत-प्रतिशत ईमान ही जिनके जीवन का पैमाना है
कोई रिश्ता नहीं है जिससे वह मेरा शुभ चिंतक है
नित्यानन्द जी से तो अपना काशी का याराना है
निर्गुण गाओ सबसे अच्छा यदि मौसम का गीत न हो
उसकी महफ़िल जैसे -तैसे हमको आज सजाना है
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