एक गीत-भींग रहे कुरुई में फूल
नयनों के
खारे जल से
भींग रहे अँजुरी में फूल ।
वासंती पाठ
पढ़े मौसम
परदेसी राह गया भूल ।
भ्रमरों के
घेरे में धूप
गाँठ बँधी से दिन,
खिड़की में
झाँकते पलाश
फूलों की देह चुभे पिन,
माँझी के
साथ खुली नाव
धाराएँ ,मौसम प्रतिकूल ।
सपनों में
खोल रहा कौन
चिट्ठी में टँके हुए पाटल,
प्रेममग्न
सुआ हरे पाँखी
छोड़ गए शाखों पे फल,
पियराये
सरसों के खेत
मेड़ो पे टूटते उसूल ।
सभी चित्र गूगल से साभार