बुधवार, 17 मार्च 2021

एक ग़ज़ल-इस बार लिखा उसने न मिलने का बहाना

 

चित्र साभार गूगल


एक ग़ज़ल


मौसम भी वही माली भी बेकार नहीं है

पर फूल में खुशबू कहीं इस बार नहीं है


इस बार लिखा उसने न मिलने का बहाना

इस बार भी खाली कोई इतवार नहीं है


दिखने में तो ये घर भी महल जैसा बना है

पर खिड़की कहीं कोई हवादार नहीं है


शोहरत की बुलन्दी पे है ये वक्त है उसका

वो मंच विदूषक कोई किरदार नहीं है


अब गाँव में बिक जाते हैं आमों के बगीचे

अब सोच रहा हूँ कहाँ बाजार नहीं है


एक आस मोहब्बत की लिए फूल खड़ी है

ऑंखें भी मेरी उससे दो चार नहीं है


मुझको भी निभाना पड़ा इक रस्म से रिश्ता

अब मेरा क़रीबी ही वफ़ादार नहीं है


जंगल को हिरन छोड़ के क्यों भाग रहा है

लोगों से सुना था यहाँ गुलदार नहीं है


होंठों पे हँसी नकली है आँखों मे उदासी

दिल थाम के हँसने का समाचार नहीं है


जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल



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