शनिवार, 3 अप्रैल 2021

एक ग़ज़ल -ये इश्क नहीं ख़त था किसी काम के लिए

 


एक ग़ज़ल -ये इश्क नहीं ख़त था किसी काम
चित्र -साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -
ये इश्क नहीं ख़त था किसी काम के लिए 

 ये इश्क नहीं ख़त था किसी काम के लिए   
जादूभरी निगाह थी इक शाम के लिए 

होठों पे तबस्सुम को सलीके से सजाना 
आँसू न रहे आरिज़ -ए -गुलफाम के लिए 

साक़ी की अदाओं का दीवाना हूँ सच है 
पै उसकी क़सम तोड़ दूँ क्या जाम के लिए 

मुद्दत पे मिले हैं तो चलो छत पे खुले में 
मसनद न लगाना अभी आराम के लिए 

शोहरत के दिनों के हैं फ़साने मेरे कितने 
अफ़साना कौन लिखता है नाकाम के लिए 

जयकृष्ण राय तुषार 

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