शनिवार, 9 नवंबर 2024

ग़ज़ल -होंठ को सिलते -सिलते

 

चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -चाँदनी, धूपमें, बारिश में 


चाँदनी, धूप में, बारिश में यूँ खिलते -खिलते 

शाख से फूल बिछड़ जायेंगे मिलते -मिलते 


सिर्फ़ कुछ देर उजाला है चलो बात करें 

वक़्त का दीप ये बुझ जायेगा जलते -जलते 


आज मौसम में हवा, पानी है, खुशबू भी है 

पाँव थक जायेंगे फिर राह में चलते -चलते 


ये तो दिन रात इक खेल है खेलो हँसकर 

चाँद उग जायेगा फिर शाम के ढलते -ढलते 


मुझको चुप रहने की तुम कितनी हिदायत दे दो 

सच मैं कह दूँगा कभी होंठों को सिलते- सिलते 

कवि जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 


4 टिप्‍पणियां:

  1. चाँदनी, धूप में, बारिश में यूँ खिलते-खिलते
    शाख से फूल बिछड़ जायेंगे मिलते -मिलते
    वाह ! मिलन और बिछोह का सुंदर रूपक, बेहतरीन ग़ज़ल

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  2. बहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही है तुषार जी आपने।

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