चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -चाँदनी, धूपमें, बारिश में
चाँदनी, धूप में, बारिश में यूँ खिलते -खिलते
शाख से फूल बिछड़ जायेंगे मिलते -मिलते
सिर्फ़ कुछ देर उजाला है चलो बात करें
वक़्त का दीप ये बुझ जायेगा जलते -जलते
आज मौसम में हवा, पानी है, खुशबू भी है
पाँव थक जायेंगे फिर राह में चलते -चलते
ये तो दिन रात इक खेल है खेलो हँसकर
चाँद उग जायेगा फिर शाम के ढलते -ढलते
मुझको चुप रहने की तुम कितनी हिदायत दे दो
सच मैं कह दूँगा कभी होंठों को सिलते- सिलते
कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
चाँदनी, धूप में, बारिश में यूँ खिलते-खिलते
जवाब देंहटाएंशाख से फूल बिछड़ जायेंगे मिलते -मिलते
वाह ! मिलन और बिछोह का सुंदर रूपक, बेहतरीन ग़ज़ल
हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
हटाएंबहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही है तुषार जी आपने।
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन
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