मंगलवार, 2 मार्च 2021

एक ग़ज़ल -मैं तो मिट्टी का दिया हूँ कहीं जल सकता हूँ

 

चित्र -साभार गूगल 

एक ग़ज़ल-
उड़ भी सकता हूँ मैं ,पानी पे भी चल सकता हूँ
सिद्ध हूँ ख़्वाब हक़ीकत में बदल सकता हूँ

कुछ भी मेरा हैं कहाँ, घर नहीं, असबाब नहीं
जब भी वो कह दे मैं घर छोड़ के चल सकता हूँ

पानियों पर, मुझे मन्दिर में, या घर में रख दो
मैं तो मिट्टी का दिया हूँ कहीं जल सकता हूँ

शौक मेरा ये नहीं पाँव में चुभता हूँ मगर
एक काँटा हूँ कहाँ फूल सा खिल सकता हूँ

मैं भी सूरज हूँ मगर कृष्ण के द्वापर वाला
दिन के रहते हुए भी शाम सा ढल सकता हूँ
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -साभार गूगल 


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