सोमवार, 1 मार्च 2021

एक गीत -क्रांतिकारियों के बलिदानों को हम कैसे भूल गए

 

चित्र -साभार गूगल 

एक गीत -क्रांतिकारियों के बलिदानों को हम कैसे भूल गए क्रांतिकारियों के बलिदानों को हम कैसे भूल गए । उनकी गाथा फिर से लिक्खो जो फाँसी पर झूल गए। आज़ादी का मतलब केवल धरना और उपवास लिखे, भगत सिंह आज़ाद से नायक उन चश्मों को नहीं दिखे, लाठी से भी पहले लड़ने बम,गोली,तिरशूल गए। सिर्फ़ पुरुष ही नहीं क्रांति में नारी भी मर्दानी थी, तिलक,सावरकर तात्या टोपे और झाँसी की रानी थी, सबके हिस्से काँटे केवल राजघाट तक फूल गए। असली गाँधी की मूरत को नकली गाँधी घेर लिए, गाँधी बनकर गाँधीवाद से ही अपना मुँह फेर लिए, फूल लगाकर कोट में चाचा देश की सरहद भूल गए। सत्य अहिंसा के तारों से सूरज अस्त नहीं होता, वीरों का बलिदान न होता दुश्मन पस्त नहीं होता, लंदन भागे अंग्रेजों के हाथ-पाँव जब फूल गए। जयकृष्ण राय तुषार

चित्र -साभार गूगल 



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