चित्र साभार गूगल |
मौसम के साथ धूप के नखरे भी कम न थे
यादें किसी की साथ थीं तन्हा भी हम न थे
बज़रे पे पानियों का नज़ारा हसीन था
महफ़िल में उसके साथ भी होकर भी हम न थे
बदला मेरा स्वाभाव ज़माने को देखकर
बचपन में दाव -पेंच कभी पेचोखम न थे
राजा हो कोई रंक या शायर, अदीब हो
जीवन में किसके साथ ख़ुशी और ग़म न थे
बादल थे आसमान में, दरिया भी थे समीप
प्यासी जमीं थी पेड़ के पत्ते भी नम न थे
दो
रंज छोड़ो गर कोई किस्सा पुराना याद हो
बैठना मुँह फेरकर पर मौन से संवाद हो
जिंदगी भी पेड़ सी है देखती मौसम कई
फूल, खुशबू चाहिए तो शौक पानी, खाद हो
अपनी किस्मत और मेहनत से मिले जो खुश रहें
क्या जरुरी मुंबई में हर कोई नौशाद हो
मिल गया दिवान गज़लों का मगर मशरूफ़ हूं
फोन पर कुछ शेर पढ़िए आपको जो याद हो
शायरा का हुस्न देखे तालियाँ बजती रहीं
बज़्म में किसने कहा हर शेर पर ही दाद हो
कवि जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
जिंदगी भी पेड़ सी है देखती मौसम कई
जवाब देंहटाएंफूल, खुशबू चाहिए तो शौक पानी, खाद हो
वाह! उम्दा शायरी
आपका हार्दिक आभार
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