शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

एक ग़ज़ल-सब ख़्वाब लिए बैठे यहाँ पाँच सितारा

 

चित्र साभार गूगल



एक ग़ज़ल-
कुछ रोज़ रहेगा ये तिलस्मी है नज़ारा

हर रंग के बैनर यहाँ हर रंग का नारा
कुछ रोज़ रहेगा ये तिलस्मी है नज़ारा

मझधार में कश्ती को बदलने लगे माँझी
ईमान न डूबे उसे मिल जाय किनारा

क्या राष्ट्र का गौरव यही,आज़ादी यही है
बस जाति औ मज़हब का सियासत को सहारा

जनता भी कटोरा लिए मुँह बाये खड़ी है
भर जाए बिना कर्म किये पेट हमारा

हर घर में उदासी है हरेक घर में बग़ावत
सब ख़्वाब लिए बैठे यहाँ पांच सितारा

कौरव भी हैं पांडव भी हैं श्रीकृष्ण,विदुर भी
मैदान ये कुरुक्षेत्र न बन जाए दुबारा

बस पूजो हिमालय,ये तिरंगा, यही गंगा
दुनिया का मुकुट बन के रहे मुल्क हमारा

कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल



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