शायर /कवि -श्री पवन कुमार [I.A.S.] |
परिचय -
हिंदी में कहें या कहें उर्दू में ग़ज़ल हो ---[जयकृष्ण राय तुषार ] प्रशासन में रहते हुए कुछ लोग कवि लेखक बनने का श्रमसाध्य प्रयास करते हैं ,वहीँ कुछ नाम ऐसे हैं जो अपनी कलम ,अपनी उम्दा लेखनी से साहित्य को बड़े मुकाम तक पहुंचा देते हैं |पवन कुमार का ओहदा अलग है और शायरी अलग | बेहतरीन सोच ,कहन ,अंदाजे बयाँ ,कहन की नवीनता सबकुछ लाजवाब है पवन कुमार की शायरी में | आदरणीय पवन कुमार की ग़ज़लें पाठकों के बीच लम्बे समय तक जिन्दा रहेंगी ,जब तक समाज में साहित्य का एक भी पाठक ,श्रोता बचा रहेगा |एक अनूठी ग़ज़ल आपके साथ आज मैं साझा कर रहा हूँ |सादर
एक ग़ज़ल -कवि / शायर श्री पवन कुमार
इक इक चुस्की चाय की फिर तो होश उड़ाने वाली हो
तूने जिस पर होंठ रखे थे काश वही ये प्याली हो
आधे सोये,आधे जागे पास में तेरे बैठे हैं
जैसे हमने शाम से पहले नींद की गोली खा ली हो
ग़ैर ज़रुरी बातें करना भी अब बहुत ज़रूरी है
मुझ को फ़ौरन फ़ोन लगाना जैसे ही तुम खाली हो
ढूंढ रहा हूँ शह्र में ऐसा होटल जिसके मेन्यू में
बेसन की चुपड़ी रोटी हो दाल भी छिलके वाली हो
तुम क्या समझो उस माहौल में हम ने उम्र गुज़ारी है
जिस माहौल में इक पल जीना जैसे गन्दी गाली हो
यादों के कुछ जुगनू रख लो शायद वक़्त पे काम आएं
उजले उजले चाँद के पीछे देखो रात न काली हो
कवि /शायर पवन कुमार
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